सिनेमा निर्देशक का माध्यम होता है : डॉ अंकित पाठक

Share

प्रयागराज, 08 नवम्बर (हि.स.)। फिल्म एप्रिसिएशन वर्कशॉप में सिने अध्येता डॉ. अंकित पाठक ने सिनेमा के निर्देशन पक्ष पर कहा कि सिनेमा वास्तव में निर्देशक का माध्यम होता है। जिस तरह किसी भी साहित्य पर साहित्यकार की छाप होती है, उसी तरह प्रत्येक सिनेमा पर भी उसके निर्देशक की छाप होती है। फिल्म के हर पक्ष का निर्धारक निर्देशक ही होता है। निर्देशक को सिनेमा का मास्टर कहा जाता है।

ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज में जारी फिल्म एप्रिसिएशन वर्कशॉप के तीसरे दिन डॉ पाठक ने चार्ली चैपलिन का उदाहरण देते हुए बताया कि चैपलिन को सिनेमा के शास्त्र में शामिल सभी तत्वों का ज्ञान था। वे अभिनय, निर्देशन, कैमरा, सम्पादन, स्क्रीनप्ले, कथानक आदि से वाकिफ थे। चैपलिन ने अपने निर्देशन में जिन फिल्मों का निर्माण किया उनमें कला के सभी तत्वों का समावेश देखा जा सकता है।

उन्होंने बताया कि निर्देशन के लिए कल्पना शक्ति, रचनाशीलता, सहज अभिव्यक्ति की क्षमता और दृढ़ निश्चय होना चाहिए। उनके अनुसार फिल्मों का निर्देशन, निर्देशक की अपनी सामाजिक वैचारिक प्रतिबद्धता से बदल जाता है। एक ही फिल्म जब अलग अलग क्षेत्रों में पुनर्निर्मित होती है, तो फिल्म का ‘पाठ’ बदल जाता है।

डॉ पाठक ने फिल्म ‘सैराट’ और रामानंद सागर की टेलीफिल्म ‘रामायण’ का उदाहरण देकर बताया कि कैसे जब इन फिल्मों के निर्देशक और इनकी पृष्ठभूमि बदलती है तो इनके कथानक की संप्रेषणीयता बदल जाती है। दर्शक का कथानक को स्वीकार करने का भाव भी बदल जाता है। निर्देशक के बदलते ही दर्शक फिल्मों पर अपनी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी देते हैं। उन्होंने दादा साहब फाल्के के पौराणिक और मिथकीय विषयों पर फिल्में बनाने के सरोकारों से लेकर राजकपूर, गुरुदत्त, के. आसिफ, कमाल अमरोही, रमेश सिप्पी, प्रकाश मेहरा, आदित्य चोपड़ा, अनुराग कश्यप, संजय लीला भंसाली, राजकुमार हिरानी, विशाल भारद्वाज आदि का उदाहरण देते हुए उनके ‘जॉनर’ का विश्लेषण किया।

डॉ. मनोज कुमार दूबे ने बताया कि इस अवसर पर सांस्कृतिक समिति की संयोजिका डॉ.गायत्री सिंह, सदस्य डॉ. दीपिका शर्मा, हिन्ंदी और राजनीति विज्ञान विभाग के कई शोधार्थी समेत सैकड़ों छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। संचालन बीएससी द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी आजाद तथा धन्यवाद ज्ञापन बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा पायल गुप्ता ने किया।