आधुनिक भारतीय संरचना के शंकराचार्य अटल जी

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आधुनिक भारतीय संरचना के शंकराचार्य अटल जी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस (25 दिसंबर) पर विशेष

मनीष शुक्ला

“दृष्टि अटल पर, वोट कमल पर”, ”राजतिलक की करो तैयारी आ रहे हैं अटल बिहारी” “भाजपा की तीन धरोहर, अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर”- देश के नारे बदलते गए लेकिन अपने नाम के मुताबिक अटलजी अडिग रहे। जब देश में राजनैतिक तूफान चरम पर था तब भी अटल बिहारी वाजपेयी किसी पतवार की तरह राष्ट्र के दिशा सूचक बने रहे। उनकी सोच में व्यापकता थी और समझ समावेशी थी। यही वजह रही कि उनकी अगुवाई में गठबंधन की सरकार पहली बार पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर सकी। उनका विराट व्यक्तित्व वट वृक्ष के समान था जिसकी छांव में उनके राजनैतिक विरोधी भी आनंद का अनुभव करते थे।

उनके स्वभाव में अभाव नहीं था इसीलिए उन्होंने जब भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व किया तो राष्ट्रीय पार्टी के रूप में देश के कोने-कोने तक पहचान दिलाई। जब उन्होंने देश की बागडोर संभाली तो विकासशील से विकसित भारत बनाने का संकल्प किया। भारत रत्न अटल जी जब प्रधानमंत्री बने तो दुनिया इक्कीसवीं सदी में कदम रख रही थी। मानो उन्होंने तभी ठान लिया कि नई सदी में संसार के सामने एक नया सितारा उदित होगा जिसकी शस्य श्यामला धरती होगी।

अटल जी अद्भुत शिल्पी थे। वो अस्थिरता को स्थिरता में बदल देते थे। वो आदि शंकराचार्य की परंपरा के आधुनिक संत थे। जिस प्रकार जगदगुरु जानते थे कि एक राष्ट्र को बांधने के लिए चारों दिशाओं में शक्ति के केंद्र होने चाहिए, उसी प्रकार अटल जी भी मानते थे कि अर्थव्यवस्था के चारों स्तंभों को एक सूत्र में बांधने से एक नए अर्थतंत्र की स्थापना हो जाएगी जिससे सदियों-सदियों तक देश को प्राणशक्ति मिलती रहेगी। वो दिल्ली से हिंदुस्तान नहीं देखते थे बल्कि सुदूर सीमाओं से राजधानी तक पहुंचने में विश्वास करते थे। इसीलिए उन्होंने देश के सबसे लंबे हाईवे प्रोजेक्ट ‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ की शुरुआत की। जिससे चारों महानगरों दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई को आपस में जुड़ सके। इस परियोजना को अमेरिकी राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली की तरह बनाया गया। करीब 5800 किलोमीटर की दूरी तय करने वाला ये देश का सबसे बड़ा और दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। जिसने सीमेंट और स्टील की मांग में नई जान फूंक दी। जिससे वाणिज्य और रियल स्टेट क्षेत्र को भी नया जीवन मिला।

वाजपेयी जी जानते थे कि किसी भी अर्थव्यवस्था का दिल सड़कों से ही धड़कता है जो उसकी शिराओं का काम करती हैं। उन्होंने देश के बुनियादी ढांचे को ठोस बनाने के लिए कार्यदल का गठन किया था। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के जरिए उन्होंने हर मौसम में हर गांव तक पहुंच बनाने की अनूठी पहल की। जिससे ना केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक क्रांति के द्वार खोल दिए। जिससे छोटे और सीमांत किसान के पास बाजार स्वयं उठकर पहुंच गया। इससे पहले जिन किसानों के पास उपज को संग्रह करने की क्षमता नहीं थी उन्हें स्थानीय मंडियों में ही कम दामों में बेचना पड़ता था। खेतिहर मजदूरों को गांव के बाहर निकलने और बेहतर मजदूरी पाने की सुविधा मिली। इस सड़क परियोजना से ग्रामीण प्रतिभाओं के विश्व मंच तक पहुंचने का रास्ता भी साफ हो गया।

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारत सरकार ने 3 मार्च 1999 को नई दूरसंचार नीति की घोषणा की। जिससे यह निजी क्षेत्र के लिए खुल गया। जिससे देश भर के टेलीफोन बूथ के कतार लगाए खड़े भारतीयों के हाथ में मोबाइल फोन आ गया और आज हम विश्व में 5जी में सबसे आगे हैं तो उसकी नींव अटल जी के समय में ही पड़ी थी, जिसे तेजी से आगे बढ़ाने के काम नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं।। कारोबार और उद्योग चलाने के लिए सरकार की भूमिका को कम करने के लिए ऐसा करना आवश्यक था और इससे जड़ हो चुके और मंद पड़े टेलीकॉम सेक्टर को नई प्राणवायु मिली। ये अटलजी की ही नीति थी जिसने स्मार्टफोन की दुनिया में भारत को दूसरा सबसे ब़ड़ा बाजार बना दिया। जो आने वाले समय में चीन को पछाड़ कर नंबन वन मार्केट बनने की क्षमता रखता है। नई दूरसंचार नीति से सरकारी स्वामित्ववाली कंपनियों का एकाधिकार खत्म हो गया और इस क्षेत्र में नई क्रांति लानेवाली निजी कंपनियों के आगे आने का मार्ग प्रशस्त हो गया। प्राइवेट कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा की वजह से टैरिफ में भारी गिरावट आई और मिलनेवाली सुविधाओं की गुणवत्ता में भी क्रांतिकारी सुधार आया। आज के डिजिटल इंडिया की नींव पहला पत्थर वाजपेयीजी ने ही रखा था।

अटलजी मन से उदार थे लेकिन सरकारी खर्च को लेकर उतने ही सजग भी थे। उनके उल्लेखनीय निर्णयों में से एक 2003 के राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम की शुरुआत थी। जिसका उद्देश्य सरकारी खर्चों में अनुशासन और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखना था। इससे पब्लिक सेक्टर सेविंग्स वित्त वर्ष 2000 में जीडीपी का 0.8 प्रतिशत थी वो साल 2005 में बढ़कर जीडीपी का 2.3 फीसदी हो गया। इस कानून की वजह से खर्च और घाटे के नियम सख्ती से लागू किए गए। इसके अलावा उनकी सरकार ने बचत के दूसरे भी तरीके अपनाए जिससे राजकोषीय घाटे में और कमी आई। फिसकल डेफिसिट का कम होना बेहतर इकोनॉमी के संकेत देता है। उनकी सरकार ने औद्योगिक उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विशेष निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों, सूचना और प्रौद्योगिकी और औद्योगिक पार्को की स्थापना शुरू की जिसपर बड़ी शान से आज का मेक इन इंडिया स्थापित है।

भारतीय इकोनॉमी के पैरों को सरकारी सुस्ती ने जकड़ रखा था। उसी तरह सरकारी कंपनियों की वजह से बाजार का बहुत बड़ा हिस्सा खुल नहीं पा रहा था। बतौर प्रधानमंत्री अटलजी ने निजीकरण और विनिवेश पर बल दिया। वो देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके पास सबसे अलग विनिवेश मंत्रालय भी था। उन्होंने ‘रणनीतिक बिक्री’ के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण का साहसिक फैसला किया। उनके ही कार्यकाल में भारत एलमुनियम कंपनी लिमिटेड, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी कंपनियो का विनिवेश किया गया। उन्होंने बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा को 26 प्रतिशत बढा दिया था। उनकी दूरदर्शिता की वजह से ही आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढने वाली अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है।

वाजपेयी सरकार ने ही ब्याज दरों को कम करने का राजनैतिक रूप से कठिन निर्णय लिया। वो एसेट रिकंसट्रक्शन कंपनियों को लेकर आए जो बैंकों को उनके खराब ऋणों से निपटने के लिए पहला कदम था। जिसके कारण लाखों लोगों का ‘अपना घर’ का सपना साकार हो सका। अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में सस्ते घर कर्ज ने हर भारतीयों को घर लेने का सपना साकार करने में मदद की। हर उस क्षेत्र में जहां सुधार की आवश्यकता थी, अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में उस पर काम हुआ। देश में बिजली का क्षेत्र भी ऐसा ही क्षेत्र था, जिसमें बड़े सुधारों की आवश्यकता थी। उन्होने केंद्रीय बिजली आयोग बनाया। साल 2003 के विद्युत अधिनियम ने बिजली क्षेत्र में सुधार किया। जिससे निजी भागीदारी और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिला।

अटलजी को शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए भी सदा याद किया जाएगा। उन्होंने साल 2001 में सर्वशिक्षा अभियान की शुरुआत की थी। जिसका उद्देश्य 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना था। योजना के जरिए बच्चों को पढ़ने की संवैधानिक अधिकार भी मिल गया। इस योजना की शुरुआत के चार वर्षों के भीतर ही स्कूल नहीं जानेवाले बच्चों की संख्या में 60 प्रतिशत गिरावट आई थी। वर्ष 1998 में भारत ने सात दिनों के भीतर पांच परमाणु परीक्षण किए और परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन गया। इसकी वजह से अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए लेकिन अटलजी के कुशल नेतृत्व के कारण ना ही उनकी सरकार विदेशी दबाव में झुकी और ना ही उन्होंने प्रतिबंधों का असर आम जनमानस तक पहुंचने दिया। पोखरण न्यूक्लियर टेस्ट भारत कूटनीतिक उपलब्धि को भी दिखाता है। जब अटलजी ने इसकी घोषणा की तो अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देश इस पर यकीन ही नहीं कर पाए। उनके भरोसा ही नहीं हुआ कि मंडराते उपग्रहों की निगरानी के बावजूद हिंदुस्तान इतनी बड़ी तैयारी इतने चुपचाप तरीके से कैसे कर ली।

अटलजी ने जहां एक तरफ दूरदर्शितापूर्ण निर्णय लिए वहीं गरीबों की भी सुध लेने से वो पीछे नहीं रहे। गरीब परिवारों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने अंत्योदय अन्न योजना को आरंभ किया। जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत कवर किए गए एक करोड़ अति निर्धन परिवारों की पहचान की गई और उन्हें 2 रुपये किलो गेहूं और 3 रुपये किलो चावल मुहैया कराया गया। समय के साथ इस योजना में बदलाव होते रहे और इसमें आनेवाले परिवारों की संख्या में बढ़ोतरी होती गई।

अटलजी ने जिस कालखंड में सत्ता संभाली उस समय देश को साहसिक निर्णय लेनेवाली एक मजबूत सरकार की आवश्यकता थी लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट थी केंद्र में उस वक्त गठबंधन वाली मिलीजुली सरकार जिसके अगुवा अटल बिहारी वाजपेयी थे। गठबंधन की गांठ में बंधे होने के बावजूद उन्होंने व्यापक राष्ट्रहित में कठोर और निर्णायक फैसले लिए। उनके हुकूमत में आने से पहले सरकार और राजनीति एक साथ चलते थे। बाजार की जरूरतों से बेपरवाह पावर और पॉलिटिक्स का ये खेल हर क्षेत्र में खेला जाता था। आलम ये हो चला था कि सियासत के पैर अर्थव्यवस्था की चादर से बहुत लंबे हो गए। अटलजी ने पॉलिटिक्स के पैर समेट दिए और इकोनॉमी की चादर को बड़ा कर दिया। इसीलिए जब उन्होंने अपना कार्यकाल छोड़ा तब सकल घरेलू उत्पाद की दर 8.4 प्रतिशत और महंगाई दर 4 फीसदी से नीचे थे। ये अटल मील का पत्थर उनके कार्यकाल की आखिरी निशानी थी।

अटल बिहारी बाजपेयी ने आधुनिक भारत की नींव को इतना मजबूत कर दिया था कि यूपीए के दोनों शासनकाल में ढुलमुल नीतियों के बावजूद भारत विकास की रफ्तार बनाए रखने में सफल हो सका और फिर जब नरेन्द्र मोदी की सरकार आई तो अटल जी के कार्यकाल में सुधारों को तेज गति मिल गई। अटल जी के कार्यकाल में बनाई मज़बूत नींव पर नरेन्द्र मोदी अब भव्य भारत की बुलंद इमारत तैयार कर रहे हैं।

(लेखक, उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हैं।)

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