फ्रास्ट इंटरनेशनल को 3500 करोड़ रुपये का कर्ज 14 बैंकों के कंसोर्टियम ने आंख मूंदकर दिया

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फ्रास्ट इंटरनेशनल को 3500 करोड़ रुपये का कर्ज 14 बैंकों के कंसोर्टियम ने आंख मूंदकर दिया। ब्रांच ऑफिस से लेकर बैंक के चेयरमैन तक ने कर्ज की फाइलें पास कीं। आखिर में मैनेजमेंट कमेटी ने फाइल पर मुहर लगाई। अब ईडी और एसएफआईओ की जांच में 14 बैंकों के 156 अधिकारी फंस गए हैं।

एजेसियों की जांच में लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के जरिए लोन प्रक्रिया की जांच की गई तो बैंक प्रबंधन तक फंस गया। आठ साल में करीब 3500 करोड़ रुपये के लोन का प्रस्ताव फ्रास्ट इंटरनेशनल ने पहले ब्रांच को दिया। वहां से फाइलें जोनल ऑफिस गईं। जोनल से क्रेडिट विभाग, फिर हेड ऑफिस, वहां से क्रेडिट कमेटी, फिर रिस्क मैनेजमेंट कमेटी ने फाइलों को पास किया।

आखिर में बैंक के एमडी, कार्यकारी निदेशक, महाप्रबंधक की अध्यक्षता वाली मैनेजमेंट कमेटी ने मुहर लगाई। आरबीआई ने ऑडिट किया। विदेशी मुद्रा विनियम विभाग ने भी चेक किया लेकिन किसी ने भुगतान में हो रही देरी पर ध्यान नहीं दिया। इतने चेक प्वाइंट के बावजूद 3500 करोड़ रुपये के एनपीए पर बैंकों को संदेह के घेरे में रख दिया है। ्

आखिर कैसे हो गए इतने बड़े एनपीए

1. बिना किसी गारंटी के बिना बैंक के सॉफ्टवेयर में एंट्री किए लेटर ऑफ अन्डरटेकिंग (एलओयू) जारी होते गए और इन आठ सालों में यह बात 14 बैंकों के किसी भी अधिकारी या आरबीआई की जानकारी में नहीं आई?
2. हर साल बैंकों में होने वाले ऑडिट और उसके बाद जारी होने वाली ऑडिट रिपोर्ट इस फर्जीवाड़े को क्यों नहीं पकड़ पाई?
3. क्यों चौदह बैंकों के किसी भी छोटे या बड़े अधिकारी ने गौर नहीं किया कि हर साल बैंक से एलओयू के जरिये इतनी बड़ी रकम जा तो रही है लेकिन आ नहीं रही है?
4. बात एक या दो एलओयू की नहीं बल्कि करीब 30 एलओयू जारी होने की है। इससे भी अधिक रोचक तथ्य यह है कि एक एलओयू 90- 180 दिनों में एक्सपायर हो जाता है। अगर कोई कर्ज दो साल से अधिक समय में नहीं चुकाया जाता तो बैंक के ऑडिटर्स को उसकी जानकारी दे दी जाती है तो फिर इस केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ?
5. एक बैंक का चीफ विजिलेंस अधिकारी बैंक की रिपोर्ट बैंक के मैनेजर को नहीं बल्कि भारत के चीफ विजिलेंस कमीशन को देता है लेकिन इस मामले में किसी भी विजिलेंस अधिकारी को आठ साल तक कोई गड़बड़ दिखाई क्यों नहीं दी?