एंटरटेनमेंट डेस्क। कहते हैं इन्सान के सपने देखने और उनको पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती। जो ये कहते हैं, सच कहते हैं। अपनी पूरी जिंदगी हम किसी सपने को लेकर जीते हैं और अपने सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी आपके अपने कंधों पर होती है। दूसरा आपकी मदद कर सकता है लेकिन उन्हें आपके लिए सच नहीं कर सकता, जी नहीं सकता। और जो इन्सान अपने चाह को पूरा करने की ठान ले उसे फिर कोई रोक नहीं सकता।
ऐसी ही सपने देखने, दिखाने और फिर उन्हें सच करने की कहानी है, यूपी के बागपत के जोहरी गांव की शूटर दादियों, चन्द्रो और प्रकाशी तोमर की। बहादुर होते हैं वो लोग जो कुछ कर दिखाने का जज्बा रखते हैं और मिसाल कायम करते हैं। शूटर दादियों की जिंदगी की कहानी भी हमारे देशवासियों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है और इस पर बनी तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर की फिल्म सांड की आंख से बड़ा ट्रिब्यूट दोनों के लिए शायद ही कुछ और हो सकता है
दुनिया की सबसे बुजुर्ग शार्पशूटर प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर पर आधारित फिल्म सांड की आंख 25 अक्तूबर को सिनेमाघरों में दस्तक देगी। तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर अभिनीत इस फिल्म की रिलीज से पहले तक कई सवाल जुड़े हुए थें। पहला सवाल, क्या महिला आधारित यह फिल्म दर्शकों को सिनेमाघरों की तरफ खींच पाएगी और दूसरा सवाल, क्या तापसी और भूमि अपने से करीब दोगुनी उम्र की महिलाओं के किरदार के साथ न्याय कर पाएंगी? फिल्म रिलीज होते ही इन दोनों ही सवालों के जवाब मिल चुके हैं।
सांड की आंख बुजुर्ग शार्पशूटर प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर के जीवन पर आधारित है। फिल्म में जहां तापसी ने प्रकाशी तो वहीं भूमि ने चंद्रो तोमर का किरदार अदा किया है। फिल्म की कहानी बागपत के जोहरी गांव से शुरू होती हैं जहां तापसी और भूमि की शादी एक ही घर में होती है। इस संयुक्त परिवार में घर के सबसे बड़े भाई रतन सिंह (प्रकाश झा) की ही चलती है।
बागपत के जोहर गांव में स्थित ये कहानी है तोमर परिवार की बहू चन्द्रो और प्रकाशी तोमर की, जो अपनी जिंदगी में घर का काम करने, खाना पकाने, अपने पति की सेवा करने, खेत जोतने और भट्टी में काम करने के अलावा ज्यादा कुछ खास कर नहीं पाईं। उनके पति दिन भर हुक्का फूंकते और बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। जिंदगी के 60 साल ऐसे ही जीवन निकाल देने एक बाद चन्द्रो और प्रकाशी को अचानक से अपने शूटिंग टैलेंट का पता चलता है। लेकिन शूटर बनने का सपना देखने लगी इन दोनों दादियों के सामने एक-दो नहीं बल्कि हजारों चुनौतियां हैं। इनमें से सबसे बड़ी है शूटिंग की ट्रेनिंग लेना और उससे भी बड़ी है टूर्नामेंट में जाकर खेलना। जो औरतें कभी अपने घर से बिना किसी मर्द के बाहर ना निकली हों, उन्होंने कैसे अपने इस सपने को ना सिर्फ पूरा किया बल्कि बाकी देशभर की महिलाओं को भी कर दिखाने की प्रेरणा कैसे दी यही इस फिल्म में दिखाया गया है।