माइक्रोप्रोटीन में गड़बड़ी से होती हैं कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां

Share

लास एंजिलिस। कोशिकाओं का पावर हाउस कहे जाने वाले माइटोकांड्रिया में शोधकर्ताओं ने पीआइजीबीओएस नामक माइक्रोप्रोटीन का पता लगाया है। शोधकर्ताओं का दावा है कि यह प्रोटीन कोशिकाओं के भीतर होने वाले तनाव को कम करने में सहायता करता है। यदि इसमें कुछ गड़बड़ी हो जाती है तो हमारा शरीर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा, ‘इस माइक्रोप्रोटीन के अध्ययन से हम किसी भी बीमारी के बारे में अपनी समझ को और बढ़ा सकते हैं।’

इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में अमेरिका के साल्क इंस्टीट्यूट के शोधार्थी भी शामिल थे।शोधकर्ताओं ने कहा कि मानव शरीर में मौजूद एक प्रोटीन मॉलीक्यूल (अणु) में अमीनो एसिड की लगभग 300 रासायनिक इकाइयां होती हैं, जबकि माइक्रोप्रोटीन की संख्या 100 के आसपास होती है। नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि पीआइजीबीओएस 54 अमीनो एसिड के अणुओं से बना होता है। यह माइक्रोप्रोटीन कैंसर जैसी बीमारियों के स्ट्रेस सेल को लक्ष्य कर सकता है।

आमतौर पर शोधकर्ता प्रोटीन को खोजने और इसके कार्यों की जांच के लिए इसे ग्रीन फ्लोरोसेंट प्रोटीन (जीएफपी) से जोड़ते हैं। हालांकि, इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पाया कि जब उन्होंने पीआइजीबीओएस के साथ जीएफपी को चिह्नित करने की कोशिश की तो यह माइक्रोप्रोटीन फ्लोरोसेंट टैग के आकार के मुकाबले बहुत छोटा हो गया था, जिसे उन्होंने बाद में स्पिलिट जीएफपी के जरिये हल किया और जीएफपी के एक छोटे हिस्से (बीटा स्टेंडर्ड) को पीआइजीबीओएस के साथ मिलाया। इसके बाद शोधकर्ता यह पता लगाने में सफल हुए कि पीआइजीबीओएस अन्य प्रोटीन्स के साथ मिलकर कैसे काम करते हैं?

शोधकर्ताओं ने कहा, ‘अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि ये प्रोटीन माइटोकांड्रिया की बाहरी झिल्ली पर बैठ जाते हैं और अन्य कोशिकाओं के प्रोटीन के साथ संपर्क करना शुरू कर देते हैं। पीआइजीबीओएस सीएलसीसी1 नामक प्रोटीन के साथ मिलकर काम करना शुरू कर देते हैं। सीएलसीसी1 एक सेल ऑर्गेनेल का हिस्सा है, जिसे एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम (ईआर) कहा जाता है।