इको फ्रेंडली दीपक बिखरेंगे समृद्धि की रोशनी, मनेगी कामधेनु दीपावली

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मीरजापुर, 08 नवम्बर (हि.स.)। दिवाली पर घरों को रोशन करने के लिए जलाए जाने वाले मिट्टी के दीयों के साथ अब गोबर से बने इको फ्रेंडली दीये से घर-आंगन रोशन होंगे। गाय भारतीय जीवन में परंपरा से कामधेनु के रूप में पूजित रही हैं।

धार्मिक रूप से पवित्र माने जाने वाले गाय के गोबर से बने इको फ्रेंडली दीपक से निकलने वाली रोशनी कुम्हारों के जीवन में समृद्धि का उजाला लाएगी ही, गो-पालकों के जीवन में भी परिवर्तन आएगा।

हिंदू रीति-रिवाज में गाय के गोबर की पूजा होती है। इसका महत्व उस समय और बढ़ जाता है, जब दिवाली पर गणेश-लक्ष्मी और गोवर्धन की पूजा होती है। पिछड़ा क्षेत्र राजगढ़ ब्लाक के भावां, भवानीपुर, दुबेपुर, गोरथरा, नुनौटी व पतार गांव के दर्जनों कुम्हार गाय के गोबर से इको फ्रेंडली दीये बनाने में जुटे हैं। पिछले वर्ष करीब 12 हजार दीपक बनाए गए थे। इस बार 15 हजार बनाने की तैयारी है। इससे गोशालाएं आत्मनिर्भर बनेंगी ही, गो-माता भी किसी को बोझ नहीं लगेंगी। इस कार्य से क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। इको फ्रेंडली दीपक पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रहे हैं।

गो-आश्रय स्थल लाते हैं गोबर, बनाते हैं इको फ्रेंडली दीपक

भावां निवासी कुम्हार सप्तमी प्रजापति व राधिका प्रजापति बताती हैं, 70 फीसदी गोबर और 30 फीसदी चिकनी मिट्टी के इस्तेमाल से दीपक तैयार किए जाते हैं। पहले गोबर में मिट्टी मिलाकर उसे हाथ से गूंथा जाता है। इसके बाद चाक पर दीपक का आकार दिया जाता है। एक मिनट में आठ से 10 दीये तैयार हो जाते हैं, फिर इसे धूप में सुखाया जाता है। खास बात यह है कि उपयोग के बाद इन दीपक के अवशेष को खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है। दीपक बनाने के लिए कुम्हार गोल्हनपुर स्थित अस्थाई गो-आश्रय स्थल से गाय का गोबर लाते हैं। गोबर से बनी सामग्री इको फ्रेंडली है। इससे प्रदूषण नहीं फैलाता। मिट्टी में तत्काल मिल जाने से खाद का भी काम करता है।

गौ-उत्पादों को उपयोग में लाने की जरूरत, आएगी समृद्धि

गाय किसानों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। बदले समय में बैलों की उपयोगिता कम हो जाने के कारण किसानों को काफी नुकसान हो रहा है, लेकिन अगर गौ-उत्पादों को संवर्धित कर उन्हें उपयोग में लाया जाए तो इससे न सिर्फ वातावरण शुद्ध होगा, बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी।