जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, नापतोल में गड़बड़ी, मनमाने दाम वसूलना, बगैर मानक वस्तुओं की बिक्री, ठगी, सामान की बिक्री के बाद गारंटी अथवा वारंटी के बावजूद सेवा प्रदान नहीं करना जैसी ढेरों समस्याओं से ग्राहकों का सामना अक्सर होता रहता है। ऐसी ही समस्याओं से उन्हें निजात दिलाने और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 15 मार्च को वर्ल्ड कंज्यूमर राइट्स डे मनाया जाता है। वास्तव में यह कस्टमर्स को उनकी शक्तियों और अधिकारों के बारे में जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
कब से हुई थी इसकी शुरुआत
उपभोक्ता आंदोलन की नींव सबसे पहले 15 मार्च 1962 को अमेरिका में रखी गई थी और 15 मार्च 1983 से यह दिवस इसी दिन लगातार मनाया जा रहा है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत मुंबई में 1966 में हुई थी। उसके बाद पुणे में 1974 में ग्राहक पंचायत की स्थापना के बाद कई राज्यों में उपभोक्ता कल्याण के लिए संस्थाओं का गठन किया गया। इस तरह उपभोक्ता हितों के संरक्षण की दिशा में यह आंदोलन आगे बढ़ता गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर 9 दिसंबर 1986 को उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पारित किया गया, जिसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद देशभर में लागू किया गया और पिछले कई सालों से भारत में हर साल 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण दिवस मनाया जा रहा है। जबकि उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों से परिचित कराने के लिए 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस का आयोजन किया जाता है।
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य
इस दिन को मनाए जाने का मूल उद्देश्य यही है कि उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए और अगर वे धोखाधड़ी, कालाबाजारी, घटतौली इत्यादि के शिकार होते हैं तो वे इसकी शिकायत उपभोक्ता अदालत में कर सकें। भारत में उपभोक्ता संरक्षण कानून में स्पष्ट किया गया है कि हर वह व्यक्ति है, जिसने किसी वस्तु या सेवा के क्रय के बदले धन का भुगतान किया है या भुगतान का आश्वासन दिया है और ऐसे में किसी भी तरह के शोषण या उत्पीड़न के खिलाफ वह अपनी आवाज उठा सकता है।