सुलतानपुर दुर्गा पूजा महोत्सव: 800 से अधिक प्रतिमाएं स्थापित, आज रहेगा पर्व का अंतिम दिन

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सुलतानपुर, 6 अक्टूबर । उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर का ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव कोलकाता के बाद देश में दूसरा सबसे प्रसिद्ध है। इस वर्ष जिले में 800 से अधिक दुर्गा प्रतिमाएं विभिन्न पूजा पंडालों में स्थापित की गई हैं। भव्य पंडाल और आकर्षक विद्युत सज्जा श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। सोमवार को महोत्सव का अंतिम दिन होगा, जिसके बाद मंगलवार से प्रतिमा विसर्जन की तैयारियां शुरू हो जाएंगी।

महोत्सव के दौरान देवी गीतों से वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। जगह-जगह भंडारे और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा निःशुल्क दवा शिविर लगाए गए हैं। सुरक्षा व्यवस्था के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिसकर्मी तैनात हैं। सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन से लगातार निगरानी की जा रही है। भक्तों की सेवा और सहयोग के लिए अपराध निरोधक, जिला सुरक्षा संगठन और केंद्रीय पूजा व्यवस्था समिति सहित कई कैंप कार्यालय संचालित किए जा रहे हैं।

सुलतानपुर के दुर्गा पूजा महोत्सव की विसर्जन शोभायात्रा इसे और भी खास बनाती है। सप्ताह भर चलने वाले इस महोत्सव का समापन तीन दिनों तक चलने वाली विसर्जन शोभायात्रा के साथ होता है। इसमें प्रसिद्ध बैंड-डीजे, गाजे-बाजे और कई राज्यों से आए कलाकार अद्भुत झांकियों और नृत्य कला का प्रदर्शन करते हैं। शहर के ठठेरी बाजार से जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक हरी झंडी दिखाकर शोभायात्रा को रवाना करेगे ।

यह विसर्जन शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए सीताकुंड धाम पहुंचती है। यहां मां गोमती की पवित्र धारा में दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। इस भव्य विसर्जन को देखने के लिए आसपास के जिलों से लाखों लोग उमड़ते हैं।

यहां दुर्गापूजा की शुरुआत शहर के ठठेरी बाजार में वर्ष 1959 में भिखारी लाल सोनी के नेतृत्व में हुई थी। इस दौरान दुर्गाभक्तों के एक दल ने श्रीदुर्गा माता पूजा समिति की स्थापना की थी। इसकी प्रतिस्पर्धा में शहर के रूहट्ठा गली, लखनऊ नाका , पंचरास्ते, ठठेरी बाजार और चौक में सरस्वती माता पूजा समिति की स्थापना हुई।

उस समय मूर्तियों के विसर्जन के लिए ट्रैक्टरों आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। मां की प्रतिमाओं को कहारों के कंधों से ले जाया जाता था। विसर्जन शोभायात्रा में दुर्गा प्रतिमा को आठ से अट्ठारह कहार अपने कंधों पर रखकर शहर भ्रमण करते हुए गोमती नदी के सीताकुण्ड घाट तक ले जाते थे।

वर्ष 1972 के बाद से देवी मां की प्रतिमाओं में बढ़ोत्तरी हुई, छह दशक पूरे होने तक सिर्फ शहर में ही डेढ़ सौ प्रतिमाएं स्थापित हो रही हैं जबकि समूचे सुलतानपुर में 800 से ज्यादा मां दुर्गा की प्रतिमाएं विधिविधान से पूजा-पण्डालों में स्थापित की जाती हैं। वर्ष 1983 के बाद से शहर के अन्दर जगह-जगह अनेक मंदिरों का दृश्य कारीगरों द्वारा पंडाल के रुप में देखने को मिलता रहा है। जिसमें लाखों का खर्च आता है।

– सात से 9 अक्टूबर तक शहर क्षेत्र में सभी बड़े एवं मध्यम वाहनों का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबंधित रहेगा।

प्रवेश प्रतिबंध हेतु निर्धारित स्थल –

(1) अमहट

(2) पयागीपुर

(3) अंकित पैट्रोल पम्प (बाईपास पुल के नीचे)

(4) बघराजपुर मोड़ हाईवे पर

(5) भुलकी चौराहा

(6) नकराही मोड़

(7) कमनगढ़ मोड़ (विनोवापुरी मोड़)

(8) टाटियानगर

(9) द्वारिकागंज

(10) टेडुई तिराहा

(11) चुनहा तिराहा

-उपरोक्त स्थानों से सभी भारी वाहन एवं मध्यम/हल्के वाहन, जो शहर से होकर अन्य जनपदों को जाना चाहते हैं अथवा शहर के अंदर प्रवेश करना चाहते हैं, उनके प्रवेश पर पूर्णतः रोक रहेगी।

-उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें टेडुई मार्ग से ही शहर के अंदर आकर रोडवेज बस अड्डे तक जाएंगी एवं वहीं से वापस टेडुई की ओर से अपने गंतव्य को जाएंगी।

-ऐसे हल्के वाहन, जिनके स्वामी/चालक का निवास शहर में है, उन्हें मान्य परिचय पत्र/आईडी कार्ड दिखाने पर प्रवेश दिया जाएगा।

-भीड़-भाड़ की स्थिति को देखते हुए शहर क्षेत्र के अंदर ई-रिक्शा का प्रवेश भी प्रतिबंधित रहेगा।

-पुलिस प्रशासन आम नागरिकों से अपील करता है कि वे यातायात व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग प्रदान करें एवं वैकल्पिक मार्गों का उपयोग कर सकुशल विसर्जन कार्यक्रम को सम्पन्न कराने में सहभागी बनें।