इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा वर्ष 2016 के एक शासनादेश को निरस्त करने के फैसले को सही करार दिया है। कोर्ट ने पिछली सरकार के शासनादेश जारी करने को संदेहास्पद करार देते हुए तल्ख टिप्पणी भी की। कहा कि चुनाव को देखते हुए, यह महज कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए जारी किया गया लगता है। यह आदेश जस्टिस राजेश सिंह चैहान की एकल पीठ ने सुभाष कुमार व 78 अन्य समेत सैकड़ों अध्यापकों व कर्मचारियों की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं को खारिज करते हुए पारित किया।
याचियों का कहना था कि 23 दिसंबर, 2016 को राज्य सरकार ने सात शिक्षण संस्थानों का प्रांतीयकरण करने का शासनादेश जारी किया था। उस शासनादेश को प्रदेश में आई नई सरकार ने 13 फरवरी, 2018 को निरस्त कर दिया। याचीगण 23 दिसंबर, 2016 को प्रांतीयकरण किए गए संस्थानों के अध्यापक व द्वितीय तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। याचियों का कहना था कि एक निर्णय जो पिछली सरकार द्वारा लिया गया था और जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंजूरी दी थी, उसे दूसरे राजनीतिक दल की सरकार बनने के कारण निरस्त किया गया जो उचित नहीं है।