हे – नारी, तू आधुनिक होकर भी हारी
में एक नारी हूँ , नारी जो संसार की जननी है। नारी जो त्याग और बलिदान है। संसार मे नारी को शक्ति के रूप में पूजा जाता है। सतयुग में देवी लक्ष्मी ने माता सीता के रूप में संसार में आकर नारी जाति के लिए एक आदर्श स्थापित किया।
हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, युगांतर में नारी जाति मे जन्म लेने वाली ऐसी अनेको पवित्र – पतिव्रता है। जिन्होंने अपने तप, तपस्या और पवित्रता से भगवान को भी विवश किया है। फिर चाहे यमराज से अपने पति के प्राँण वापस मांगने वाली सती सावित्री हो । या वन में वास करने वाली एक पवित्र पतिव्रता माता अनुसूईया हो , या अग्निकुँण्ड से जन्मी द्रोपदी हो जो, पांच पतियों के संग भी अपने धर्म को निभाने में सफल रही ।
दूआपर युग में गांधारी ने अपना पतिव्रत धर्म निभाने के लिए जीवन भर नेत्रो पर पटटी बांधी । ये नारी आदि काल में भी इतनी स्वतंत्र थी कि संसार के राजा महाराजाओ की सभा में इन्हें अपना स्वयंवर करने की स्वतंत्रता थी । तथा राजकाज के कार्यो में भी एक पटरानी के तौर पर महाराज के बायें आसन पर विराजमान रहती थी ।
परन्तु युग बदलते रहै । और आज हम एक आधुनिक युग में प्रवेश कर गये । जहाँ नारी जाति आधी आबादी के रूप मे पुरुषों संग कंधे से कंधा मिलाकर संसार का कठिन से कठिन कार्य कर रही है । यहां तक कि संसार के इस पुरूष प्रधान समाज में कई देशो में तो नारी ने राज भी किया है आज की नारी स्वतंत्र भी है और आत्मनिर्भर भी । दुनिया की हर प्रतिस्पर्धा को हमने पुरूषों से जीता है ।
बेशक हर अत्याचारी को हमने निर्भया बनकर मारा है। परन्तु आज आईने के समक्ष बैठ कर, अपनी छवि को निहारते हुए यह खयाल भी अनायास ही आ गया, कि हे नारी बेशक तू पुरूषों से कमतर नहीं है । आज तू स्वतंत्र है। आत्मनिर्भर है। लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाओं और आधुनिकता के जाल में फंसी आज तू अपनी सतयुग की नारी से ही हारी है । हारी है।
पूनम कौशिक
( लेखिका भाजपा महिला मोर्चा की क्षेत्रीय मंत्री है )