फर्जी एनकाउंटर: पूर्व SHO समेत तीन को उम्रकैद, CBI अदालत ने ठोका 7.50 लाख जुर्माना!

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24 दिसंबर को तरनतारन जिले में 1992 में हुए दो युवकों के अपहरण, फर्जी मुठभेड़ और हत्या के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाया। अदालत ने इस मामले में तत्कालीन थाना सिटी तरनतारन के प्रभारी गुरबचन सिंह, एएसआई रेशम सिंह और अन्य पुलिसकर्मी हंस राज सिंह को धारा 302 और 120 बी के तहत दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस मामले के एडवोकेट सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि दोषियों पर कुल मिलाकर साढ़े सात लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया, जिसे न देने पर उन्हें तीन साल और जेल में बिताने की सजा भुगतनी पड़ेगी।

मामले की पृष्ठभूमि में, यह स्पष्ट होता है कि 18 नवंबर 1992 को पुलिस ने जगदीप सिंह उर्फ ‌मक्खन को उसके घर से अगवा किया। इस दौरान फायरिंग में मक्खन की सास सविंदर कौर की मृत्यु हुई। इसके बाद, 21 नवंबर 1992 को गुरनाम सिंह उर्फ पाली का भी अगवा किया गया। बाद में, 30 नवंबर 1992 को पुलिस ने उन्हें एक फर्जी मुठभेड़ में मार दिया। एफआईआर के अनुसार, पुलिस ने एक युवक को संदिग्ध मानकर उसे पकड़ लिया, जिसने अपनी पहचान गुरनाम सिंह बताई।

सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, पुलिस ने जो कहानी बताई, वह पूरी तरह से झूठी थी। यह दावा किया गया था कि गुरनाम सिंह के ठिकाने पर पुलिस ने कार्रवाई की और वहां आतंकवादियों ने उन पर गोलियां चलाईं। परिणामस्वरूप, इस फायरिंग में गुरनाम सिंह की हत्या कर दी गई। घटनाओं का यह क्रम पुलिस द्वारा रची गई एक साजिश का हिस्सा था, जिसे बाद में कोर्ट में चुनौती दी गई।

प्रथम दृष्टया, इस मामले में पंजाब पुलिस की कार्यप्रणाली में गंभीर अनियमितताएँ सामने आई थीं। दोनों मृतक युवक, जगदीप सिंह और गुरनाम सिंह, पूर्व में पुलिस के मुलाजिम थे, जो अपने ही पुलिसकर्मियों द्वारा शिकार बने। इस मामले में शुरुआती जांच के बाद, सीबीआई ने 1997 में गुरबचन सिंह और अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने भी अज्ञात शवों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया की जांच के आदेश दिए थे।

हालांकि, यह मामला कई वर्षों तक अदालतों में लटका रहा है। उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में इसके स्टे लगाए गए रहे। आखिरकार, 2016 में स्टे हटने के बाद ट्रायल शुरू हुआ, और अब जाकर अदालत ने इस जघन्य अपराध के दोषियों को सजा देने का फैसला सुनाया है। इस निर्णय से क्षतिग्रस्त परिवारों को न्याय मिलने की उम्मीद जगती है और यह दर्शाता है कि कानून का हाथ आखिरकार सभी के लिए समान है।