शनिवार दोपहर लगभग 1:30 बजे की घटना है, जब पुलिस मुख्यालय जयपुर में एक महत्वपूर्ण जांच चल रही थी। 18 दिन पहले श्रीगंगानगर में 10,000 करोड़ रुपये की ठगी के मुख्य योजनाकारों को पकड़ा गया था। इस मामले के संदर्भ में दैनिक भास्कर की टीम साइबर अपराध के विशेष पुलिस अधीक्षक शांतनु सिंह के कार्यालय में पहुंची। उसी समय, उनके फोन पर एक कॉल आई, जिसे उन्होंने संकेत से बताया कि यह एक साइबर ठग हो सकता है। आईपीएस अधिकारी ने अनुरोध पर कॉल को स्पीकर मोड पर डाल दिया, और टीम ने कैमरा ऑन कर दिया।
कॉल पर एक महिला का स्वर सुनाई दिया, जो शेयर मार्केट में निवेश की लुभावनी योजना प्रस्तुत कर रही थी। कृषि क्षेत्र से जुड़े एसपी शांतनु सिंह ने ‘विकास शर्मा’ के रूप में ठग से बात करने का नाटक किया। महिला ने खुद को एक वित्तीय कंपनी की प्रतिनिधि बताते हुए कहा कि उनकी कंपनी निश्चित रिटर्न देती है और निवेश की शुरुआत न्यूनतम 50,000 रुपये से की जा सकती है। उन्होंने आश्वासन दिया कि यह पैसा स्टॉक मार्केट में प्रयोग होगा और रिटर्न समय-समय पर मिलेगा। एसपी ने ठगी के तरीके को समझने के लिए कई प्रश्न पूछे, जैसे कि निवेश की जानकारी कैसे मिलेगी और धन की आवश्यकता होने पर वापसी की प्रक्रिया क्या होगी।
बातचीत के दौरान ठग ने एसपी को यह भी बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली सेवाएं पूरी तरह से कानूनी हैं और एक अनुबंध के माध्यम से प्रबंधित की जाती हैं। लेकिन जब एसपी ने और जानकारी मांगी, तब पता चला कि इस कंपनी का न तो जीएसटी नंबर है और न ही शेयर मार्केट में निवेश करने का वैध लाइसेंस। इससे स्पष्ट हुआ कि यह एक ठगी का नेटवर्क है। साइबर एसपी ने खुलासा किया कि ठगों ने उच्च प्रोफाइल लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, जिनमें सरकारी अधिकारी, डॉक्टर और इंजीनियर्स शामिल हैं। ये ठग डार्क वेब से डेटा हासिल करके अपने ठगी के जाल को फैला रहे हैं।
राजस्थान में ऐसी ठगी की कई घटनाएं हो चुकी हैं, जहां निवेशकों को आकर्षक रिटर्न का लालच देकर लाखों रुपये ठग लिए गए हैं। ठग आम तौर पर एक छह महीने का लॉक-इन पीरियड बताकर निवेश करते हैं, और जब लोग अपना पैसा निकालना चाहते हैं, तो उनके अकाउंट तक की पहुंच बंद कर दी जाती है। इस क्रम में एक डॉक्टर का भी हाल ही में 1.5 करोड़ रुपये का ठगी का मामला सामने आया है, जिसमें उन्हें गलत तरीके से फर्जी निवेश कंपनियों में फंसा दिया गया था।
इस बढ़ती ठगी के मामलों को रोकने के लिए, राजस्थान पुलिस ने एक संयुक्त टास्क फोर्स का गठन करने का निर्णय लिया है, जिसमें साइबर क्राइम सेल, ईडी, आयकर विभाग और सीबीआई मिलकर काम करेंगी। इसके अलावा, ‘साइबर शील्ड’ नामक अभियान के तहत भी कई साइबर ठगों को गिरफ्तार किया गया है, और लगभग 8.87 करोड़ रुपये की ठगी की गई धनराशि को रोका गया है। यह दिखाता है कि सरकार और पुलिस ठगी के खिलाफ गंभीरता से कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और भविष्य में इस प्रकार के कृत्यों को रोकने के लिए कड़े कदम उठा रहे हैं।
ये घटनाएँ ना केवल समाज में सुरक्षा की कमी को उजागर करती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि तकनीकी विकास के साथ-साथ साइबर ठगी की चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं। इसलिए, नागरिकों को सतर्क रहना, जानकारी प्राप्त करना और कभी भी संदेह होने पर तुरंत रिपोर्ट करना बेहद आवश्यक है।