इंगांराजवि में ‘विद्यमान परिवेश में विशिष्टाद्वैत की सार्थकता’ विषयक विशेष व्याख्यान आयोजित
अनूपपुर, 3 अप्रैल (हि.स.)। स्थावर हो अथवा जंगम, समस्त सृष्टि का निर्माण सर्वशक्तिमान सत्ता अथवा ईश्वर ने किया है। हर कण को संचालित करने वाली एक ही शक्ति है, यह हम सभी का दायित्व है कि हम ईश्वर की बनाई सृष्टि का संरक्षण करें, उसके सौंदर्य को बनाए रखें, यही जनसेवा, जीव सेवा, नारायण सेवा है। स्वामी रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत दर्शन संसार में भ्रम के लिए स्थान नहीं है बल्कि सबकुछ सत्य है। यह विचार विश्वविद्यालय में आयोजित ‘विद्यमान परिवेश में विशिष्टाद्वैत की सार्थकता’ विषयक विशेष पर व्याख्यान बुधवार को संबोधित करते हुए पद्मभूषण से सम्मानित श्रीश्री त्रिडण्डी चिन्ना श्रीमन्ननारायण जेवर स्वामी ने संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने विशिष्टाद्वैत को सहज रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि अनेक इकाइयों से एक की निर्मिति होती है जो समग्र होती है। यह समग्र रूप में निर्मित एक ही विशिष्टाद्वैत है। विशिष्टाद्वैत की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए कहा कि यह दर्शन हमें यह सीख देता है कि हम सृष्टि के सभी तत्वों का सम्मान तथा संरक्षण करें। यह दर्शन सभी को प्रकृति के सम्मान एवं संवर्धन के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि हमको दूसरों का मत परिवर्तन कर उनके विश्वास को बदलना नहीं चाहिए। विशिष्टाद्वैत दर्शन आने वाले समय में भी विश्व का मार्गदर्शन करता रहेगा। स्वामी जी ने कहा कि यह मोनोलॉग नहीं बल्कि डायलाग होना चाहिए। विद्यार्थियों को समझाते हुए कहा कि यदि समर्पित होकर प्रयत्न किया जाय तो कोई भी स्वप्न असंभव नहीं होता। व्याख्यान के अंत में स्वामी जी ने लोगों की शंकाओं का समाधान किया और उन्हें सही रास्ता सुझाया।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि बहुत सौभाग्य से संतों का दर्शन प्राप्त होता है। जनकल्याण की साक्षात मूर्ति परम श्रद्धेय श्री श्री श्री त्रिडण्डी चिन्ना श्रीमन्ननारायण जेवर स्वामी जी का आगमन तथा आशीर्वाद हम सभी को लाभान्वित करेगा। विशिष्टाद्वैत दर्शन आत्मा-परमात्मा, लोक-परलोक सभी के समन्वय की दृष्टि से हमको संपन्न करता है। स्वामी रामानुजाचार्य की दृष्टि भारतीय दर्शन एवं संस्कृति हेतु समन्वयकारी और संवर्धनकारी रही है।