मुकुंद
बेहद अजीम और अजीज शायर मुनव्वर राणा तहजीबी शहर लखनऊ की सरजमीं पर सोमवार को सुपुर्द-ए-खाक कर दिए गए। रविवार देररात दिल का दौरा पड़ने से राणा ने इसी शहर में फानी दुनिया को अलविदा कहा। मुशायरों की महफिल को लूटने वाले मुनव्वर उर्दू को ही नहीं उसकी बहन हिन्दी को भी गहरी उदासी के समंदर में डुबो गए। मुशायरों और दीगर महफिलों में भी मुनव्वर राणा से मां पर केंद्रित उनकी गजलों को हजारों बार सुनाया गया। 71 वर्षीय राणा के चाहने वाले सदमे में हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुनव्वर राणा के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में जन्मे मुनव्वर राणा ने उर्दू साहित्य में समृद्ध योगदान दिया है। प्रधानमंत्री ने एक्स हैंडल पर कहा, “श्री मुनव्वर राणा जी के निधन से दुख हुआ। उन्होंने उर्दू साहित्य और काव्य में समृद्ध योगदान दिया। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं। उनकी आत्मा को शांति मिले।”
मुनव्वर राणा ने अपनी शायरी, गजल, नज्म और कविताओं से हर किसी के दिल को छुआ है। उन्होंने मां और पुत्र के पवित्र रिश्ते, मां के प्रेम और करुणा के अहसास को अपनी रचनाओं के जरिये बयां किया है। इस फनकार के न रहने पर उनकी गजल की यह चंद पंक्तियां जेहन में उभर आईं-”दुख भी ला सकती है लेकिन जनवरी अच्छी लगी/जिस तरह बच्चों को जलती फुलझड़ी अच्छी लगी/रो रहे थे सब, तो मैं भी फूटकर रोने लगा/मुझको अपनी मां की, मैली ओढ़नी अच्छी लगी।” यह वो पंक्तियां हैं, जिन्होंने मुनव्वर को रातों-रात देश-दुनिया में शोहरत प्रदान की। यह भी इत्तेफाक है कि 2024 में जनवरी आई और एक अजीम शख्सियत दुनिया से उठ गया। लेकिन यह जनवरी मुनव्वर की उस ख्वाहिश को पूरा कर गई, जो उन्होंने अपनी मां की मौत पर भरभराई आवाज में कहा था-”मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं/ मां से इस तरह से लिपट जाऊं की बच्चा हो जाऊं।”
मुनव्वर राणा के न रहने की बात जैसे ही अस्पताल से बाहर आई, रात सोने के लिए बिस्तरों पर पहुंच चुके उनके चाहने वाले लाखों लोग हड़बड़ाकर उठ बैठे। उनकी नींद उड़ गई। इन्हीं में से एक हैं वरिष्ठ शायर और पत्रकार हसन काजमी। वो उनके हम प्याला-हम निवाला रहे हैं। कहते हैं बताने को ढेरों यादें हैं। वो रायबरेली के थे पर कोलकाता रहते थे। वहीं पढ़े-लिखे। ट्रांसपोर्ट के धंधे में हाथ आजमाया। फिर लखनऊ आए। उन्हें उस्ताद वाली आसी की शागिर्दी मिली। मैं यहीं उनसे मिला। कब दोस्त बन गए, पता ही नहीं चला। गुलमर्ग होटल अमीनाबाद में उन्होंने एक कमरा लिया और शुरू हो गया महफिलों का दौर। इस बीच अखबार निकालने की एक कोशिश की गई पर वो नाकाम हो गई।
उनके जिगरी दोस्तों में उत्तर प्रदेश पॉवर काॅरपोरेशन के पूर्व प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी हैं। वो कहते हैं, बड़ा बेईमान निकला। कहता था कि जाने को हम पाकिस्तान चले जाते, पर ये दोस्त कहां मिलेंगे। उसने हम कुछ दोस्तों पर लिखा था- जाने को हम पाकिस्तान चले जाते, पर ये दोस्त कहां मिलेंगे/ ये बड़े लोग हैं जीने का हुनर जानते हैं…। वह कहते हैं कि मुनव्वर से पहली मुलाकात 2000 कुंभ में हुई थी। तब से शायद कोई एक दिन नहीं रहा, जब बात न होती रही हो। अभी कुछ दिन पहले वादा किया था कि मेरे चैंबर में आकर मुझे कुछ सुनाएगा। सब झूठ निकला। जानी-मानी शायरा सबीना अदीब को जब यह मनहूस खबर मिली, तब वह औरंगबाद के मुशायरे में थीं। मुनव्वर राणा के निधन की सूचना पाते ही कह उठीं, सरपरस्त चला गया। अंतरराष्ट्रीय मुशायरों में जब हम जाते तो लगता की एक अभिभावक, एक सरपरस्त हमारे साथ है।
मुनव्वर राणा जरूर इस संसार से रुखसत हो गए हैं, पर वे साहित्य के आसमान पर चमकते रहेंगे। उनकी रचनाओं की पंक्तियां गुनगुना कर लोग उन्हें याद करते रहेंगे-किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई/ मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई…। हंसते हुए मां-बाप की गाली नहीं खाते/बच्चे हैं तो क्यूं शौक से मिट्टी नहीं खाते…। बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है/न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है…।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)