मप्र विस चुनाव: 66 साल में 23 ब्राह्मण विधायक दिए होशंगाबाद-इटारसी ने

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नर्मदापुरम, 7 नवंबर (हि.स.)। वर्ष 1951 में विधानसभा गठित होने के बाद होशंगाबाद विधानसभा में कांग्रेस के नन्हेलाल विश्वकर्मा ने ब्राह्मण उम्मीदवार पण्डित रामलाल शर्मा को 8295 तथा दूसरी बार वर्ष 1957 में इसी जोड़ी के साथ जिनवरदास फौजदार भी प्रतिद्धन्दी थे जिनमें इस विधानसभा क्षैत्र के लोगों ने सवण बाहुल्य होने के बाबजूद पण्डित रामललाल शर्मा को दूसरी बार पराजित किया।

होशंगाबाद विधानसभा के सीमांकन के बाद 66 साल हो गये जिसमें एक बार भी किसी अन्य जाति-वर्ग का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका और 23 बार ब्राह्मण ही विधायक बने, जिससे इस बार कयास लगाये जा रहे है कि क्या यहॉ के मतदाता कॉग्रेस एवं भाजपा को बगीचे तक सीमित होने से ब्राह्मण विधायक चुने जाने के मिथक को तोड़कर भाजपा से निर्दयीय प्रत्याशी भगवाती प्रसाद चौरे को जिताकर रिकार्ड कायम करेंगे, यह सब समयचक्र पर निर्भर करता है कि दोनों भाईयों के बीच तकरार का लाभ निर्दयीय भगवती चौरे को मिल सकेगा, यह एक जादुई करिश्मा लग रहा है, हालॉंकि लोकसभा चुनाव में इस संसदीय सीट पर जातिगत वोटों का जादू नहीं चल सका है।

इटारसी विधानसभा से कब कौन कितने वोटों से जीता इसकी बानगी देखें-कब विजेता विधायक – प्रतिद्वंदी कितने से हराया, वर्ष- 1957 हरि प्रसाद चतुर्वेदी- करण सिंह तोमर 7610, वर्ष-1962 कुंवर सिंह- हरिप्रसाद चतुर्वेदी 2985, वर्ष-1967 हरि प्रसाद चतुर्वेदी- रमेश चंद्र 1225, वर्ष-1972 हरि प्रसाद चतुर्वेदी- नर्मदा प्रसाद सोनी 6239, वर्ष-1977 नर्मदा प्रसाद सोनी- मानक अग्रवाल 6693 वर्ष-1980 विजय कुमार दुबे- नर्मदा प्रसाद सोनी 13353, वर्ष-1985 विजय कुमार दुबे -सरताज सिंह 1867, वर्ष-1990 डॉ. सीतासरन शर्मा- विजय कुमार दुबे 13346, वर्ष-1993 डॉ. सीतासरन शर्मा- विजय कुमार दुबे 1139, वर्ष-1998 डॉ. सीतासरन शर्मा- मानक अग्रवाल 5821 वर्ष-2003 गिरिजाशंकर शर्मा- रमेश साहू 19970 वोटों से विजयी रहे।

होशंगाबाद विधानसभा से कब कौन चुनाव जीता

वर्ष-1951-52 नन्हेलाल-रामलाल शर्मा 8295, वर्ष-1957 नन्हेंलाल- रामलाल शर्मा 1979, वर्ष-1962 सुशीला दीक्षित – प्रेमसिंह 4650, वर्ष-1967 सुशीला दीक्षित – प्रेमसिंह 5550, वर्ष-1972 सुशीला दीक्षित – भवानीशंकर शर्मा 1270, वर्ष-1977 रमेश बरगले – सुशीला दीक्षित 13370 वर्ष-1980 मधुकरराव हर्णे-अंबिका प्रसाद शुक्ला 1206, वर्ष-1985 अंबिका प्रसाद शुक्ल-मधुकर राव हर्णे 14030, वर्ष-1990 मधुकरराव हर्णे- विनयकुमार दीवान 932, वर्ष-1993 अंबिका प्रसाद शुक्ल-मधुकर राव हर्णे 6909, वर्ष-1998 सविता दीवान शर्मा- मधुकर राव हर्णे 15, वर्ष- 2003 मधुकर राव हर्णे- सविता दीवान शर्मा 27897, वर्ष-2008 गिरिजाशंकर शर्मा- विजय दुबे 25320, वर्ष- 2013 डॉ. सीतासरन शर्मा- रवि जायसवाल 49296, वर्ष-2018 डॉ. सीताशरण शर्मा -सरताजसिंह 24535 वोटों से जीते, परन्तु इस लड़ाई दो सगे भाई गिरिजाशंकर शर्मा एवं डॉ. सीताशरण शर्मा के बीच है इसलिये यहॉ के मतदाताओं को धर्मसंकट है और वे दोनों के साथ दोनों के झण्डे लेकर देखे जा सकते है, ऐसे ही एक व्यक्ति को दोनों ही प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार एवं झण्डा के साथ देखे जाने पर प्रश्न किया तो उसका तपाक से जबाव था, ये सब हमने उनसे ही सीखा है, वोट किसे दोंगे के प्रश्न पर उनका जबाव था, कि यह बगीचे द्वारा जो किया जाता रहा है, वहीं वोट करेंगे।

वर्ष 1951-52 से वर्ष 2018 तक होशंगाबाद एवं इटारसी सीट में हुए 15 बार के विधानसभा चुनावों में 66 सालों में 23 बार बार ब्राह्मण विधायक चुनने के कारण होशंगाबाद प्रथम दो बार को छोड़ दिया जाये तो आज तक किसी अन्य जाति वर्ग के व्यक्ति को नहीं चुन सकी है। इस बार भाजपा के 5 बार विधायक रहे डॉ. सीताशरण शर्मा का पार्टी में अंदरूनी विरोध ज्यादा रहा है जिसका कारण उनके कार्यकाल में उनका अपने परिवार के प्रति ज्यादा प्रेम एवं कुछ निर्णयों से पार्टी व संगठन के लोगों का विरोध तथा उनके गृहनगर की नगरपालिका को ऑखों का काजल बनाकर होशंगाबाद नगरपालिका के प्रत्येक कार्य में मीनमेक निकालकर अपनी ही पार्टी के नगरपालिका अध्यक्ष अखिलेश खण्डेलवाल का खुला विरोध रहा है जिसमें समय मिलने पर जबाव देने में खण्डेलवाल भी पीछे नहीं रहे है, अलबत्ता यह लड़ाई सड़कों पर लड़ी जाने से भाजपा नेतृत्व के संज्ञान में आने से जिले में अच्छा संदेश नहीं पहुॅचा है।

विगत 2018 का चुनाव इस लड़ाई के बाबजूद डॉ. शर्मा अपनी पार्टी के विरोध के बाद अपनी ही पार्टी के उनके गुरू सरताजसिंह के 10 दिन पूर्व कांग्रेस की टिकिट पर लड़ने से वे भले जीत गये पर इस वर्ष मुकाबला अपने बड़े भाई गिरिजाशंकर शर्मा से है, जो 40 दिन पूर्व भाजपा से कांग्रसी हुऐ है, उनके समक्ष कांग्रेस एवं भाजपा के असंतुष्टों का पूरा सपोट भाजपा से बगावत कर निर्दयीय चुनाव लड़ रहे भगवती प्रसाद चौरे को होने से दोनों भाईयों की लड़ाई में वे मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे है, जिसमें अब लोग चर्चारत है कि क्या इस बार इस विधानसभा से ब्राह्मण विधायक से मुक्ति मिलकर चौरे जयमाल पहनेंगे, यह कहना जल्दवाजी होगी, समय ही सभी बातें तय करेंगा जो परिणाम के दिन सामने आ सकेगी।