सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा शुक्रवार से

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देहरादून 16 नवंबर (हि.स.)। सूर्य पूजा का महापर्व छठ 17 नवंबर से है। चार दिवसीय इस पर्व के तहत नहाय खाय का पहला दिन शुक्रवार, 17 नवंबर को, दूसरा दिन खरना शनिवार को और तीसरा दिन रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होगा। सोमवार को चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए माताएं-बहनें भोर से ही जल स्रोतों में पहुंच जाएंगी और जल में खड़े होकर सूर्य देव के उदित होने की प्रतीक्षा करेंगी तथा उन्हें अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगी।

इस संदर्भ में उत्तराखंड में भी विशेष आयोजन होता है। बिहारी महासभा के कोषाध्यक्ष रितेश कुमार ने एक बैठक में कहा कि छठ पूजा के कई महत्वपूर्ण एवं धार्मिक नियम होते हैं। छठ पूजा के नियम पूरे चार दिनों तक चलते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को स्नानादि से निवृत होने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। इसे नहाय खाय भी कहा जाता है। इस दिन कद्दू भात का प्रसाद खाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन नदी या तालाब में भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। संध्या में खरना करते हैं। खरना में खीर और बिना नमक की पूड़ी आदि को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। खरना के बाद निर्जल व्रत शुरू हो जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भी व्रती महिलाएं उपवास रहती हैं और शाम में किसी नदी या तालाब में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। यह अर्घ्य एक बांस के सूप में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईंख, नारियल आदि को रखकर दिया जाता है। कार्तिक शुक्ल सप्तमी की भोर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन छठ व्रत संपन्न हो जाता है और व्रती व्रत का पारण करती हैं।

ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। उत्तराखंड में पूर्वांचल के सबसे बड़े संगठन बिहारी महासभा कल से चार दिनी छठ महापर्व मनाएगी। बिहारी महासभा के अध्यक्ष ललन सिंह ने बताया कि सभा द्वारा छठ महापर्व को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। बड़े पैमाने पर घाटों की सफाई की जा रही है। इसके लिए अलग-अलग टीम बनाई गई है, जो टपकेश्वर महादेव मंदिर प्रेम नगर चंद्रमणि और मालदेवता में कमेटी के साथ रहेगी। कमेटी द्वारा सभी स्थानों पर घाटों की सफाई की जा रही है।

बिहारी महासभा के सचिव चंदन कुमार झा ने बताया कि सभी प्रमुख घाटों पर सुलभ इंटरनेशनल द्वारा स्वच्छता में सहयोग दिया जा रहा है। उनके स्थानीय जीएम एवं क्षेत्रीय प्रबंधक उदय सिंह द्वारा सभी प्रमुख स्थानों पर घाटों की सफाई के लिए सुलभ इंटरनेशनल के वालंटियर को लगाया गया है। छठ धार्मिक आस्था एवं स्वच्छता का पर्व है इसलिए पहले स्वच्छता और फिर कद्दू भात का कार्यक्रम किया जाएगा। सभा द्वारा सुलभ इंटरनेशनल के मदद के लिए सुलभ के अधिकारियों को और खासकर इसके संस्थापक दिवंगत बिंदेश्वर पाठक को धन्यवाद भी दिया गया।

विधि और शुभ मुहूर्त-

नहाए खाए के साथ छठ की शुरुआत होती है। पहले दिन गंगा स्नान करने के बाद कद्दू भात और साग खाया जाता है। बिहार-झारखंड की अगर बात करें तो बिहार में लौकी का प्रचलन है। छठ व्रती नहाय खाए के दिन कद्दु का सेवन करते हैं। ऐसे में बाजारों में इसे लेकर कद्दू की डिमांड बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है सरसो का साग चावल और कद्दू खाकर छठ महापर्व की शुरुआत होती है, इसलिए व्रत के पहले दिन को नहाए खाए कहते हैं। इन दोनों सब्जियां पूरी तरह से सात्विक माना जाता है। नहाए खाए के दिन खासतौर पर कद्दू की सब्जी बनायी जाती है। व्रत रखने वाले सबसे पहले इसे ग्रहण करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अलावा इसे खाने के कई सारे फायदे हैं। कद्दू में एंटी-ऑक्सीडेंट्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है, जिससे इम्यून सिस्टम स्ट्रांग होता है और व्रती बीमारियों से बचे रहते हैं। इसके अलावा, कद्दू में डाइटरी फाइबर भरपूर मात्रा पाया जाता है। इसके सेवन से पेट से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं। इसलिए छठ महापर्व के पहले दिन कद्दू भात खाया जाता है।