29HREG412 स्वर्णप्राशन संस्कार से बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता : डा. वंदना पाठक
कानपुर, 29 मई (हि.स.)। भारतीय संस्कृति में 16 संस्कार प्रचलित हैं और हर संस्कार का अपना अलग महत्व है। इनमें स्वर्णप्राशन संस्कार बहुत ही अहम है क्योंकि इस संस्कार की प्रक्रिया में बच्चों को जो खिलाया पिलाया जाता है उससे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह बातें सोमवार को वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डा. वंदना पाठक ने कही।
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के स्कूल आफ हेल्थ साइंसेस के स्वास्थ्य केन्द्र एवं राजकीय बाल सुधार गृह कल्यानपुर में स्वर्णप्राशन का आयोजन किया गया। यहां पर लगभग 50-60 बच्चों का निःशुल्क रूप से स्वर्णप्राशन कराया गया। वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डा0 वंदना पाठक ने स्वर्णप्राशन संस्कार के बारे में बताते हुए कहा कि आयुर्वेद की यह विधा बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी कारगर है। संस्कार की महत्ता बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रचलित 16 संस्कारों में से एक संस्कार है। यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास में विशेष योगदान करता है। जिन बच्चों यह संस्कार नियमित रूप होता है, उनमें मौसम और वातावरणीय प्रभाव के कारण होने वाली समस्याएं अन्य बच्चों की अपेक्षा कम देखी गयी हैं। स्वर्णप्राशन में प्रयुक्त होने वाली औषधि स्वर्ण भस्म, वच, गिलोय, ब्राह्मी, गौघृत, मधु आदि द्रव्यों के सम्मिश्रण से बनाया जाता है। उन्होंने कहा बच्चों को नियंत्रित करने के लिए डांटना, पीटना आदि भी उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। अतः बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए। इस दौरान डा0 दिग्विजय शर्मा, डा0 मुनीश रस्तोगी, डा0 राम किशोर, रूपेश बाजपेयी, शैलेन्द्र वर्मा, हरीश शर्मा आदि उपस्थित रहे।