बुद्ध पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध के पवित्र अस्थि अवशेष का दर्शन पाने के लिए उमड़े बौद्ध श्रद्धालु

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05HREG182 बुद्ध पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध के पवित्र अस्थि अवशेष का दर्शन पाने के लिए उमड़े बौद्ध श्रद्धालु

– ऐतिहासिक सारनाथ परिसर बुद्ध शरणं गच्छामि, संघम शरणं गच्छामि… मंत्र से गुंजायमान

वाराणसी, 05 मई (हि.स.)। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा ) पर शुक्रवार को महात्मा बुद्ध की उपदेश स्थली ऐतिहासिक सारनाथ परिसर बुद्ध शरणं गच्छामि, संघम शरणं गच्छामि… मंत्र से गुंजायमान रहा। मूलगंध कुटी विहार में देश विदेश के बौद्ध श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। श्रद्धालुओं ने भगवान बुद्ध के पवित्र अस्थि अवशेष का श्रद्धाभाव के साथ दर्शन किया।

कुटी विहार में अलसुबह विश्व शांति के लिए विशेष पूजा के बाद के पवित्र अस्थि अवशेष को शीशे के जार में रंग-बिरंगे फूलों से सजा कर रखा गया। महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों के देखरेख में बौद्ध श्रद्धालु पवित्र अस्थि अवशेष के दर्शन् के लिए कतारबद्ध होते रहे। इसमें जापान, थाईलैंड, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली आदि देशों से भी बौद्ध अनुयाई शामिल रहे। भगवान बुद्ध की 2,667वीं जयंती पर सारनाथ में बौद्ध श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देख सुरक्षा का भी व्यापक प्रबंध किया गया था। बुद्ध पूर्णिमा पर ही सारनाथ स्थित अन्य बौद्ध मठों को पंचशील झंडों से सजाया गया। शाम को धम्म क्षेत्र का पूरा प्रांगण दीपों से रोशन किया जाएगा।

भिक्षु सुमितानंद थेरो के अनुसार बौद्ध अनुयायियों के लिए यह दिन खास है। वैशाख पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की जयंती मनाई जाती है। गौरतलब हो कि वर्ष में सिर्फ दो बार वैशाख पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थि अवशेष के दर्शन होते हैं। सारनाथ के मूलगंध कुटी विहार में हीरे और मोतियों से जड़े पात्र में अस्थि अवशेष तहखाने में रखा गया है।

अस्थि अवशेष को मूलगंध कुटी विहार के निर्माण के साथ ही तत्कालीन ब्रिटिश गर्वनर ने महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के संस्थापक अनगारिक धर्मपाल को वर्ष 1931 में प्रदान किया था। माना जाता है कि कुशीनगर में बुद्ध के महानिर्वाण के बाद चिता की अग्नि में उनके शरीर के कई हिस्से तो जल गए थे लेकिन अस्थियां यथावत बनी रहीं। चिता शांत होने पर अस्थियों को स्वर्ण कलश में रखा गया।