ढाका के शंकर मठ में 48 वर्षों से जल रही अखंड ज्योति

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28HINT9 ढाका के शंकर मठ में 48 वर्षों से जल रही अखंड ज्योति

– गीता का भी हो रहा अनवरत पाठ, आद्य शंकराचार्य ने की थी मठ की स्थापना

– शंकराचार्य ने मठ में प्रतिष्ठित विशाल विश्वनाथ मंदिर में किया रुद्राभिषेक

ढाका, 28 मई (हि.स.)। बांग्लादेश के चिट्टागौंग जिले में आद्य शंकराचार्य भगवान द्वारा स्थापित शंकर मठ में पिछले 48 वर्षों से अनवरत अखंड ज्योति जल रही है। इस दौरान 48 सालों से यहां श्रीमद्भगवद्गीता का भी निरंतर पाठ चल रहा है।

शंकर मठ के पीठाधीश्वर स्वामी तपनानंद गिरि ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि आद्य शंकराचार्य भगवान ने दिग्विजय यात्रा के दौरान इस मठ की स्थापना स्वयं की थी। यह मठ चिट्टागौंग जिले के सीताकुंड में चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर स्थित है।

कई एकड़ में फैले शंकर मठ के आश्रम में भगवान विश्वनाथ का विशाल मंदिर भी प्रतिष्ठित है। एक सवाल के जवाब में मठ के पीठाधीश्वर ने बताया कि आश्रम के प्रथम तल पर 48 वर्षों से जल रही अखंड ज्योति और गीता के अनवरत पाठ में अभी तक कोई व्यवधान नहीं आया। उन्होंने बताया कि आद्य शंकराचार्य भगवान को समर्पित यह अनुष्ठान भविष्य में भी जारी रहेगा।

उन्होंने बताया कि आश्रम में जल रही अखंड ज्योति का दर्शन करने बांग्लादेश के अलावा अन्य देशों के भी श्रद्धालु आते रहते हैं। चट्टल भवानी शक्ति पीठ में दर्शन-पूजन के बाद उधर से गुजर रहे जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देव तीर्थ भी शंकर मठ गए और आश्रम में प्रतिष्ठित विशाल विश्वनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक किया। मठ के पीठाधीश्वर ने शंकराचार्य का भव्य स्वागत किया। आश्रम के बटुकों ने स्वस्ति वाचन किया और वहां के साधु-संतों ने जगद्गुरु को फूलमाला एवं अंगवस्त्रम् भेंट किया।

इस दौरान शंकराचार्य ने मठ में चल रहे गीता पाठ और अखंड दीप का अवलोकन किया। इसके अलावा शंकराचार्य मठ परंपरा पर बंगाली भाषा में प्रकाशित पुस्तक का उन्होंने लोकार्पण किया। इस अवसर पर जगद्गुरु ने मठ के पीठाधीश्वर को बांग्लादेश में दशनामी परंपरा को जीवंत रखने हेतु साधुवाद दिया एवं सनातन धर्म की ध्वजा को लहराए रखने के लिए उनकी सराहना भी की।

पुण्डरीक धाम इस्कान मंदिर भी पहुंचे जगद्गुरु देव तीर्थ

शंकराचार्य देवतीर्थ चिट्टागौंग के उपजिला हाटहजारी स्थित पुण्डरीक धाम इस्कान मंदिर भी गए। वहां के संतों और श्रद्धालुओं ने जगद्गुरु का जोरदार स्वागत किया। मान्यता है कि इस पवित्र स्थल पर श्री राधा रानी के पिता वृषभानु राजा का कलयुग अवतार चैतन्य महाप्रभु के पार्षद पुण्डरीक विद्यानिधि का जन्म हुआ था। विशाल क्षेत्र में फैले इस आश्रम में श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड और गिरि गोवर्धन के भी दर्शन होते हैं। आश्रम को भव्यता प्रदान करने के लिए शंकराचार्य जी ने वहां के प्रमुख चिन्मय ब्रह्मचारी के प्रयासों की सराहना भी की।

कुमिला स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर में भी जगद्गुरु ने की पूजा

चट्टल भवानी शक्ति पीठ पहुंचने से पहले रास्ते में कुमिला शहर स्थित अति प्राचीन मंदिर में भी जगद्गुरु देवतीर्थ ने पहुंचकर दर्शन पूजन किया। इस मंदिर को भारत स्थित त्रिपुरा के महाराजा वीर विक्रम मणिक बहादुर देव वर्मन द्वारा स्थापित किया गया था। शंकराचार्य के वहां आगमन से स्थानीय श्रद्धालु काफी उत्साहित दिखे। लोगों ने गाजे-बाजे के साथ जगद्गुरु की आगवानी की। महिलाओं ने परंपरागत ढंग से स्वागत किया।

शंकराचार्य ने ढाकेश्वरी सिद्ध पीठ में भी किया पूजन

इससे पहले जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देव तीर्थ जी महाराज ने ढाकेश्वरी मंदिर में देवी की विधिविधान से पूजा-अर्चना की। ढाकेश्वरी मंदिर में पहुंचने पर बांग्लादेश के सांसद पंकज नाथ और मंदिर समिति के अध्यक्ष मणिन्द्र कुमार नाथ ने शंकराचार्य की आगवानी की। वहां भारी संख्या में उपस्थित स्थानीय श्रद्धालुओं ने जगद्गुरु का भव्य स्वागत किया।

ढाकेश्वरी सिद्ध पीठ ढाका के लालबाग किले से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर बांग्लादेश में हिन्दू संस्कृति और आस्था का प्रमुख केंद्र है। मान्यता है कि ढाकेश्वरी देवी के नाम पर ही ढाका शहर का नामकरण किया गया है। दरअसल ‘ढाकेश्वरी’ का अर्थ ही है ‘ढाका की देवी’। इस देवी को आदिशक्ति दुर्गा माता का स्वरूप माना जाता है। बांग्लादेश सरकार द्वारा वर्ष 1996 में ढाकेश्वरी मंदिर को राष्ट्रीय मंदिर घोषित किया गया। इसके बाद मंदिर का नाम बदलकर ढाकेश्वरी जाटीय मंदिर (राष्ट्रीय मंदिर) रखा गया।