पारम्परिक मिट्टी के बर्तन बनाने की शिल्पकला को योगी सरकार से मिला पुनर्जीवन

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17HSNL4 पारम्परिक मिट्टी के बर्तन बनाने की शिल्पकला को योगी सरकार से मिला पुनर्जीवन

-प्रयागराज में शिल्पकारों के जीवन में आए बदलाव की दिखी झलक

-कुम्हारी से पलायन कर रहे परिवारों को मिल रहा मुख्यमंत्री माटीकला रोजगार योजना का साथ

-प्रयागराज में शिल्पकारों ने गंगा को शामिल कर अपने दीवाली के दीयों को दी अलग पहचान

-सरकार की पर्यावरण चिंता भी पारम्परिक शिल्पकला को दे रही पुनर्जीवन

प्रयागराज, 17 अक्टूबर (हि.स.)। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के खत्म होते परम्परागत रोजगार को आगे बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश में शुरू हुई मुख्यमंत्री माटी कला रोजगार योजना से प्रयागराज में हजारों परिवार लाभान्वित हुए हैं। जो परिवार अपनी पुश्तैनी पारम्परिक शिल्पकला से दूरी बना रहे थे, आज इसी शिल्प कला से उनके जीवन में बदलाव आ रहा है और तेजी से वह इसे अपना रहे हैं। उपेक्षित पड़े इस शिल्प को योगी सरकार ने नया जीवन दिया है। इसकी वजह से इस दीवाली इन शिल्पकारों के घरो में समृद्धि का उजाला भी फ़ैल रहा है।

–शिल्प से पलायन कर रहे परिवारों को मिली आजीविका की राह

मुख्यमंत्री माटी कला रोजगार योजना से प्रयागराज जनपद के ढाई हजार से अधिक मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार परिवारों के काम को नयी पहचान मिली है। प्रोत्साहन और इनके उत्पादों की बाज़ार में बढ़ी मांग से मिट्टी के बर्तन बनाने का जो काम धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा था उसमें इस योजना ने नयी उम्मीद और ऊर्जा का संचार किया है।

प्रयागराज शहर के लाल बिहारा मुहल्ले के चार दर्जन से अधिक कुम्हार परिवारों के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने का काम पुश्तैनी था। यहां के हीरालाल प्रजापति का कहना है कि उनके बाप-दादा भी इसी काम को करते थे। लेकिन परम्परागत तरीके से हो रहे इस काम में फायदा कम होने की वजह से इससे परिवार का गुजारा कर पाना मुश्किल हो गया था। हीरालाल की दो लड़कियों, दो बच्चे सहित घर के आधा दर्जन लोग पूरे साल इस काम में लगे रहते थे तब कहीं जाकर इससे परिवार चलता था। लड़कियों की स्कूल की फीस तक के लिए दिक्कत थी, जिससे उन्हें अपनी लड़कियों की पढ़ाई तक रोकनी पड़ी।

मुख्यमंत्री माटी कला रोजगार योजना के तहत उन्हें निःशुल्क डिजाइनर मूर्तियों और दीयों के बनाने के सांचे खादी ग्रामोद्योग से मिले। जिससे उनके काम ने तेजी से रफ़्तार पकड़ी। उनकी एक लड़की रूपा ने गंगा के किनारे से मिट्टी लाकर उसके दीये बनाने शुरू किए। जिसने उनके पावन दीयों की अच्छी ब्रांडिंग होनी शुरू हुई और अब उनके ये दीये स्थानीय बाज़ार से बाहर जा रहे हैं। पावन दीयों के लिए मध्य प्रदेश और दिल्ली तक से उन्हें आर्डर मिल रहे हैं।

लाल बिहारा की ही तारा देवी परम्परागत पत्थर के भारी भरकम चाक की जगह बिजली से चलने वाले चाक के जरिये एक दिन में उतने मिट्टी के बर्तन और दीये तैयार कर लेती है जितनी पहले वह एक हफ्ते में घर के सभी सदस्यों के लगे रहने पर करती थी। आज तारा दूसरो के घर में झाडू-पोछा करने के दायरे से निकल कर घर के आठ लोगो की जीविका सरकार से मिले विद्युत चालित चाक से चला रही हैं। मुख्यमंत्री माटी कला रोजगार योजना से मिले बिजली के इस चाक ने तारा के परिवार की आर्थिक स्थिति और तारा के आत्म सम्मान को पहले से मजबूती प्रदान की है।

प्रयागराज के पीपलगाँव के राकेश प्रजापति का परिवार छोटा था जिसकी वजह से परम्परागत तरीके से मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने में उन्हें अधिक श्रम करने के बाद भी जीविका चलाना कठिन हो रहा था। और कोई आय का जरिया न होने की वजह से यह पेशा उनकी मजबूरी थी। ऐसे में खादी ग्रामोद्योग की माटी कला रोजगार योजना से राकेश को दीये बनाने की मशीन मिल गई। राकेश अब कम वक्त में ही अधिक दीये तैयार कर लेते हैं और उनका मन भी अब उनकी अपनी इस शिल्प कला में पहले से अधिक रम रहा है।

प्रयागराज के जिला खादी एवं ग्रामोद्योग अधिकारी राम औतार यादव बताते हैं कि मिट्टी के बर्तन बनाने की विलुप्त होती इस शिल्प कला को सरकार की इस योजना ने नया जीवन दिया है। इससे इस पर आश्रित कुम्हारों को जीविका के बेहतर साधन मिले हैं। जिले में पिछले दो वर्षो में बिजली से चलने वाले 280 कुम्हारी चाक इन परिवारों को निःशुल्क वितरित किये गए हैं। उत्पाद में विविधता पैदा करने के लिए मूर्तियां बनाने वाले सांचे इन शिल्पकारो को दिए गए हैं। उत्पादों में चमक और बेहतर फिनिशिंग देने के लिए उत्पादों की रंगाई करने वाली मशीने भी इन्हे वितरित की गई हैं। शिल्पकारों के स्किल को बढ़ाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित कर सस्ता ऋण मुहैया कराया गया है।

–शिल्पकारों ने गंगा को भी शामिल कर अपने दीयों को दी अलग पहचान

प्रयागराज के इन शिल्पकारों ने मिट्टी के बर्तन के बाजार की प्रतिस्पर्धा को नजदीक से समझा है। अपने मिट्टी के बर्तनों और दीयों को एक नया स्टार्टअप जैसा रूप देने के लिए इन्होने दीवाली के दीयों को गंगा किनारे के घाट से लाई मिट्टी से बनाना शुरू किया। गंगा नदी के आसपास के खेतो की मिट्टी से बने इन दीयों को नाम दिया गया ’पावन दीये’। पवित्रता की इस नयी ब्रांडिंग ने इनके दीयों को बाज़ार में बिक रहे दीयों से अलग खड़ा कर दिया। इनके ये दीये अब शहर के बाजार की सीमाओ से बाहर जाकर दूसरे राज्यों में भी अपनी जगह बनाने में लगे हैं।

–सरकार की पर्यावरण चिंता भी पारम्परिक शिल्पकला को दे रही पुनर्जीवन

इन शिल्पकारो का बाज़ार पहले मौसमी होता था। पहले मंगल कार्यों, शादी- विवाह, दीपावली, करवा चौथ और डेढ़िया पर्व के बाजारों तक ही इनका रोजगार सीमित था। पर्यावरण को बचाने की चिंता से प्रदेश सरकार हानिकारक प्लास्टिक पर प्रतिबंधित की तरफ बढ़ी है। ऐसे में चाय, कॉफी और पीने के पानी के कप या गिलासों के तेजी से बढ़ते बाजार ने मिट्टी के कुल्हड़ बनाने वाले शिल्पकारो को पूरे साल का रोजगार का जरिया दे दिया है। मिट्टी के बर्तनों की तरफ लोगों का रुझान बढ़ाने के लिए सरकार कुम्हारों को नई डिजाइन बनाने के लिए प्रशिक्षित भी कर रही है। योगी सरकार मिट्टी के उत्पादों की मार्केटिंग में भी इन शिल्पकारों का पूरा सहयोग कर रही है ताकि इस शिल्प से जुड़े कामगारों को रोजगार के अधिक अवसर हासिल हो सकें।