फ़िल्म समीक्षा: गुंजन सक्सेना – द कारगिल गर्ल

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शैली : बायोग्राफी /ड्रामा
भाषा : हिंदी
रिलीज़ : 12 अगस्त 2020
प्लेटफार्म/ओटीटी : नेटफ्लिक्स
आयु उपयुक्तता : 13+
अवधि : 1 घंटा 47 मिनट
निर्देशन : 3/5
संवाद : 3.5/5
पटकथा : 3/5
संगीत : 2.5/5
कुल मिला के : 3/5

फिल्म गुंजन सक्सेना कहानी है फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना की, जो कि असल में एक भारतीय वायु सेना अधिकारी और पूर्व हेलीकाप्टर पायलट हैं। वह 1996 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुईं, 1999 की कारगिल युद्ध की दिग्गज महिला हैं और लड़ाकू क्षेत्र में उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला हैं।

ये फिल्म एक कहानी है, गुंजन सक्सेना के उड़ान के सपनों से लेकर सपनो की उड़ान को हकीकत में बदलने की, उनके संघर्ष और दृढ़शक्ति की, महिला सशक्तिकरण की | गुंजन को बचपन से ही एक पायलट बनने का शौक है | जहां उसकी माँ और भाई का मानना है कि लड़कियों को लड़कियों वाले काम ही करना चाहिए मसलन शादी करके घर संभालना, वहीँ उसकी सपनों को साकार करने में उसका साथ देते हैं उसके पिता, जो ना केवल उसको पायलट बनने से जुड़े अवसरों के बारे में बताते हैं, बल्कि उसका साहस बढ़ाते हैं और ज़रुरत पढ़ने पर बेहतर तरीके और उदहारण से उसका मार्गदर्शन भी करते हैं |

फिल्म को तीन हिस्सों में बांटा सकता है, गुंजन के पायलट बनने का सफर, भारतीय वायु सेना में गुंजन ट्रेनिंग के दौरान संघर्ष और अवसर मिलने पर भारतीय सेना के लिए कारगिल युद्ध में अपना कौशल दिखाना | एक फिल्म के तौर पर ये एक अच्छी फिल्म है जोकि और बेहतर हो सकती थी | फिल्म के कुछ कमज़ोर पक्ष हैं जिन में से एक है फिल्म की पटकथा | गुंजन के पायलट बन ने का सफर ठीक है लेकिनं फिर भारतीय वायु सेना में उनके साथ हुआ भेदभाव ज़्यादा ही दिखाया गया है जो कहीं ना कहीं खलता है | फिल्म भले ही नब्बे के दशक पर आधारित हो, लेकिन एक प्रक्रिया द्वारा चुन कर आयी हुई महिला अफसर से इतना भेदभाव अखरता है |

फिल्म का एक और कमज़ोर पक्ष है गुंजन सक्सेना की भूमिका में जाह्नवी कपूर का अभिनय | जाह्नवी कपूर ने बहुत मेहनत की है लेकिन फिर भी भाव दर्शाने में कहीं ना कहीं वो कमज़ोर पड़ जाती हैं | फिल्म पूरी तरह उन्ही पर केंद्रित है इसके बावजूद एकअच्छे मुख्य कलाकार की कमी खलती है जोकि यह दर्शाता कि उनको अपने आप को साबित करने और इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए बहुत मेहनत करने की ज़रुरत है ख़ास कर अपने भावों पर |

एक सुलझे हुए इंसान, गुंजन के मार्गदर्शकऔर समर्थक पिता के रूप में पंकज त्रिपाठी ने बेहतरीन अभिनय किया है | अपने शांत और सरल स्वभाव से वो दर्शकों का दिल जीतने में सक्षम रहते हैं | अंगद बेदी के पास ज़्यादा कुछ करने को नहीं था |

फिल्म का सबसे मज़बूत पक्ष है विनीत सिंह का अभिनय जोकि एक कड़क अफसर में अपनी एक अलग छाप छोड़ जाते हैं | विनीत एक मंझे हुए कलाकार है जिन्होंने गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, मुक्काबाज इत्यादि कई फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है और यहाँ भी वो अपने अभिनय से बाज़ी मार ले जाते हैं | मानव विज भी छोटी भूमिका के बावजूद उत्कृष्ट अभिनय करके आपका ध्यान खींचते हैं जोकि एक अच्छे कलाकार की पहचान है|

फिल्म में ४ गाने हैं जोकि संगीत के लिहाज़ से ठीक हैं और खलते नहीं हैं, लेकिन अगर नहीं भी होते तो भी चलता | फिल्म की लगभग पौने दो घंटे की अवधि उचित है | फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है और कुछ हवाई शॉट्स बेहतरीन बन पड़े हैं |

कुल मिलाकर नतीजा ये है कि फिल्म अच्छी है और यकीनन देखने योग्य है| मेरे हिसाब से ऐसी फिल्में बननी चाहिए और लोगों तक ऐसी कहानियां ज़रूर पहुंचनी चाहिए | महिला सशक्तिकरण का ये एक बेहतरीन नमूना है |

फ़िल्म समीक्षक
दीपक चौधरी