चातुर्मास में न करें ये काम, मिलेगा अश्वमेध यज्ञ का फल

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आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक चातुर्मास आरंभ हो चुका है, इस दौरान बरतें कई सावधानियां…

चार जुलाई से चातुर्मास

देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक का समय) आरंभ हो चुका है। शास्त्रों के अनुसार, यह ऐसा समय है कि अगर आप चाहें तो अश्वमेध यज्ञ के बराबर पूण्य अर्जित कर सकते हैं, लेकिन अगर जरा सी भी सावधानी नहीं बरती तो बड़ा नुकसान हो सकता है। आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी, देवशयनी, विष्णुशयनी, पदमा या शयन एकादशी भी कहा जाता है।

देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक यानी अगले चार महीने तक देवता आराम करेंगे। मतलब आगे के चार महीनों (सावन, भादों, अश्विन, कार्तिक) तक आप शादी-ब्याह जैसे कोई मांगलिक कार्य नहीं कर सकेंगे। इस दौरान अगर इंद्रियों को नियंत्रित करते हुए अगर थोड़े से नियमों का पालन कर लिया जाए तो आपको एक अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिल सकता है।

क्या न करें

  • सावन के महीने में साग एवं हरी सब्जियां, भादों में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दालें खाना वर्जित है
  • किसी की निंदा व चुगली न करें और न ही किसी को धोखा दें
  • चातुर्मास के दौरान शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए
  • कांसे के बर्तन में भोजन न करें
  • शय्या पर न सोकर,धरती पर बिछावन लगाकर सोएं
    -मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज और रसदार वस्तुओं का सेवन न करें

क्या करें

  • ईश्वर की आराधना करें
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें
  • ब्राह्मणों को स्वर्ण अथवा पीले रंग की वस्तुओं का दान करें
  • भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करें, कमल पुष्प से उनका पूजन करें
  • मंदिर में दीपदान करना श्रेयस्कर है
आचार्य-नीरज रतूड़ी
शिक्षा शास्त्री
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