लॉकडाउन से टूटा बुलंदशहर का पॉटरी-सेरेमिक उद्योग, जानिए कितना था सालाना टर्नओवर

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बुलंदशहर :- कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी से देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश-दुनिया में मंदी की मार है। व्यापार-उद्योगों की हालत खस्ताहाल हो गई है। डेढ़ महीने की बंदी की मार से देश के सबसे बड़े बुलंदशहर-खुर्जा पॉटरी-सेरेमिक उद्योग की भी कमर टूट चुकी है। लॉकडाउन के बाद इसके उबर पाने की संभावना बहुत मुश्किल दिखाई दे रही है।

लॉकडाउन के कारण यहां के चार सौ से अधिक इकाइयों के भविष्य के साथ कामगारों के भरण-पोषण और उद्योगपतियों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो गया है। एसोसिएशन का कहना है कि पॉटरी-सेरेमिक को दोबारा से खड़ा करना पाना पहाड़ खोदने जैसा ही होगा। करोड़ों के सालाना टर्नओवर के इस उद्योग में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों मजदूर और सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं जो अधिकांशत: अपने घरों को लौट चुके हैं। ऐसे में उनका दोबारा से यहां आ पाना बहुत ही मुश्किल है।

सरकार भले ही लॉकडाउन के बाद इस उद्योग की मदद की बात कहे और योजना बनाए लेकिन इस उद्योग से जुड़े लोगों के लिये यह बहुत दूर की कौड़ी दिखाई दे रही है। हालांकि संबंधित विभाग जिला उद्योग केंद्र इसे कोई अलग से समस्या नहीं मानता है। उसका कहना है कि यह समस्या देशभर में सभी उद्योगों के साथ जुड़ी है। इसके लिये सरकारें अवश्य ही कोई न कोई उपाय खोजेंगी।

इसके लिए पहचाना जाता है बुलंदशहर-खुर्जा

यह व्हाइटवेयर पॉटरी और रेड क्ले पॉटरी के लिये जाना जाता है। यहां पर पॉटरी-सेरेमिक उत्पादों का निर्माण किया जाता है। भारतीय सेरेमिक उद्योग को मुख्यत: दो समूहों में विभाजित कर सकते हैं। व्हाइटवेयर पॉटरी और रेड क्ले पॉटरी (टेराकोटा भी शामिल) है। खुर्जा मुख्य रूप से व्हाइटवेयर उत्पाद का निर्माण करता है। इसमें कुछ टेराकोटा निर्माण करने वाली इकाइयां शामिल हैं।

इसका छह सौ वर्ष पुराना है इतिहास-

पॉटरी- सेरेमिक उत्पादों के निर्माण का इतिहास छह सौ वर्ष पुराना है। रेड क्ले में भवन निर्माण के लिए ईंटों, छतों के टाइल्स, कुल्हड़, प्लेट, तश्तरी, सुराही आदि बनाने का काम शामिल है। जबकि व्हाइट्सवेयर उत्पादों में कप, प्लेट्स, मग्स, टी-सेट, स्टोनवेयर कुंडीज, जार आदि बनाया जाता है। इसके अलावा सागर्स,  आग रोधी ईंटों और हीट रोधी उत्पादों का भी निर्माण होता है।

जिले में कुल 415 इकाइयां हैं पंजीकृत-

बुलंदशहर में कुल 415 इकाइयां पंजीकृत हैं। वैसे तो यहां पर छोटी-बड़ी 492 इकाइयां हैं। लेकिन मोट मैक डोनाल्ड के शोध के अनुसार  बुलंदशहर में कुल माइक्रो यूनिट-50, स्माल-350 और मीडियम स्तर की 15 इकाइयां शामिल हैं।

40 हजार से अधिक मजदूर काम करते हैं-

विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस उद्योग में 40 हजार से अधिक मजदूर काम करते हैं। इनमें 15 हजार से अधिक प्रत्यक्ष और 25 हजार से अधिक अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं। इसके साथ ही कुछ स्थायी कर्मी भी शामिल हैं।

चार सौ करोड़ का है सालाना टर्नओवर-

इस उद्योग का सालाना टर्नओवर चार सौ करोड़ रुपये का है। इनसे जुड़े लोगों के परिवार भी इसी पर निर्भर रहते हैं।   

3314.30 लाख का रहता है बजट-

पिछले वर्ष के सर्वे के अनुसार इस उद्योग का 3314.30 लाख बजट था। इस साल के जो हालात हैं उसमें क्या होगा अभी तक कुछ नहीं कहा जा सकता है।

50 हजार डिजाइनर्स जुड़े हुए हैं-

इस उद्योग से 50 हजार डिजाइनर्स जुड़े हुए हैं जो अपनी बेहतरीन डिजाइन और कला से इस उद्योग को नयी ऊंचाई प्रदान कर रहे हैं। जिला उद्योग सेंटर स्किल लेबर के लिये विभिन्न तरह के कार्यक्रम चलाती है ताकि उन्हें इन उद्योगों में काम करने के लिये तैयार किया जा सके।

पॉटरी-सेरेमिक उद्योग के उबर पाने की गुंजाइश बहुत कम-

खुर्जा पॉटरी मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के सचिव निखिल पोद्दार का कहना है कि यह उद्योग पहले से ही मार झेल रहा था। कोरोना महामारी के चलते यह पॉटरी-सेरेमिक उद्योग मरणासन्न हालत में पहुंच गया है। अब इसके उबर पाने की गुंजाइश बहुत कम है।  इस उद्योग का अधिकांश मजूदर अपने घरों को लौट चुका है। सरकारें रियायत की बात कह रही हैं लेकिन वह क्या होंगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा। क्योंकि इन उद्योगों के सामने मजदूर, कच्चे माल के साथ बाजार की भी परेशानी होगी। इसके निकट भविष्य में सही तरीके से उबर पाने के आसार कम ही हैं। उनके यहां पर गत 21 मार्च से सबकुछ बंद पड़ा है। यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, आस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात आदि देश में है इसका वैश्विक बाजार ।

जिला उद्योग केंद्र, बुलंदशहर के महाप्रबंधक योगेश कुमार ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि यह हाल केवल पॉटरी-सेरेमिक उद्योग का नहीं है। सभी उद्योगों की यही दशा है। कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन से देशभर के छोटे-बड़े उद्योगों पर व्यापक असर पड़ा है। उसका प्रभाव बुलंदशहर के उद्योगों पर भी है। महाप्रबंधक का कहना है कि सरकारें उद्योगों को लेकर बहुत संजीदा हैं और वे इसके लिये अवश्य ही उपाय तलाश कर रही हैं।