Noida : कोरोना संकट- कर्ज लेकर खरीदा ऑटो आग में जलकर हुआ खाक, आश्वासन के बाद भी नहीं मिली सहायता

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-14 परिवार के 70 लोगों को रहने के लिए छत नहीं

नोएडा :- वैश्विक महामारी कोरोना के रोकथाम के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई। इस दौरान समाज के सभी वर्गों समस्या झेलनी पड़ी, सबसे ज्यादा मजदूरों को व प्रतिदिन कमाने और खाने वाले को हुई।

प्रशासन के लाख दावों के बीच उत्तर प्रदेश का शो विंडो कहे जाने वाले नोएडा में 14 परिवार के लगभग 70 लोग बिना छत के खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं। बीते 21 मई को नोएडा फेस 3 थाना अंतर्गत ममुरा में झुग्गियों में आग लगी थी, आग में सारी झुग्गी जलकर खाक हो गई, वहां रहने वाले 14 परिवार अब खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं। वहीं रहने वाले रंजीत पोद्दार कहते है कि मैं आज से 20 साल पहले बिहार से नोएडा कमाने आया था। कड़ी मेहनत करने के बाद मैंने लॉकडाउन से कुछ दिन पहले एक लाख 20 हजार रूपए में एक ऑटो खरीदा था। वो भी जलकर खाक हो गया। 21 मई की रात जब आग लगी तो पुलिस और अग्निशमन विभाग को फोन करके घटना कि जानकारी दी लेकिन पुलिस व फायर स्टेशन 100 मीटर की दूरी पर होते हुए भी 40 मिनट में घटनास्थल पर पहुंची।

14 परिवार रहते थे झुग्गियों में

रंजीत पोद्दार के अनुसार वहां 14 परिवारों के 70 लोग रहते थे, जिनमें बच्चे व महिलाएं भी शामिल हैं। आग लगने के बाद अब सब खुले आसमान के नीचे दिन और रात काटते हैं। उन परिवारों में एक गर्भवती महिला भी है जिसका नाम चंचला देवी है, वह भी वही रहती है। झुग्गी में रहने के लिए प्रत्येक महीने 500 रुपए सभी लोग देते थे।

पोद्दार बताते है कि आग लगने के बाद जिलाधिकारी सुहास एलवाई की तरफ से 24 घंटे में मदद पहुंचाने की बात कही गई थी लेकिन आठ दिन बीत जाने के बाद भी हमें कोई मदद नहीं मिली है। हम थाने में जब मदद मांगने जाते हैं तो वहां से हमे डांट फटकार कर भगा दिया जाता है।

हमे हमारे गांव जाना है

रंजीत पोद्दार गुहार लगाते हुए कहते हैं कि आग में मेरे जमा किए गए पैसे, आधार कार्ड और अन्य कागज जलकर खाक हो गए। हमें किसी भी हालत में घर बिहार भेज दें हम वहीं मजदूरी कर लेंगे या हमारे लिए यही खाने पीने की व्यवस्था सरकार करदे नहीं तो हम भूखे मर जाएंगे। अभी हमारे पास न तो बर्तन है न ही चूल्हा और न राशन। हमें गांव वाले कुछ राशन और बर्तन देकर गए थे उसी से हम दो ईंट पर खाना बना रहे है।

दवाई लाने के पैसे भी नहीं

पीड़ित बताता है कि आग से मेरी पत्नी व बच्चे झुलस गए थे। मेरे पास पैसे भी नहीं है कि दवाई ला सकूं, लेकिन आग से झुलसने के बाद दर्द बहुत होता है जिसको सहना मुश्किल लग रहा है। रंजीत पोद्दार ने कहा कि आग से झुलसने के बाद पीड़ा असहनीय हो रही है, इसलिए पीपल के पत्ते का लेप लगा कर काम चला रहे हैं।

कमाई का कोई साधन नहीं, गांव में भी जमीन नहीं कैसे जिंदा रहे

पीड़ित सुन्दरी देवी कहती हैं कि हम पहले कोठियों में घूम घूम कर काम करते थे। उसी से हमारी कमाई होती थी। अब कोरोना के कारण हमे कोई काम पर नहीं रख रहा। जो पैसे जमा कर रखे थे वो भी आग में जल गए। कमाई के लिए कोई साधन नहीं है, यहां पर कोई मदद नहीं मिल रही। इस से अच्छा हम गांव चले जाते, जमीन तो वहां भी नहीं है लेकिन कम से कम वहां लोग कर्जा तो दे ही देंगे। यहां तो कोई उधारी तक नहीं देता।