‘पत्थर’ को नारी के रूप में बदलता देख झूम उठे लोग, सभी के मुंह से निकला ‘जय श्री राम’

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गाजियाबाद। ताड़का वध के बाद श्री सुल्लामल रामलीला में राम द्वारा मारीच को सौ योजन फेकना, सुबाहु वध, अहिल्या उद्धार से फुलवारी लीला का मंचन किया गया।

लीला मंचन में भगवान राम-लक्ष्मण ने सिद्धाश्रम में पहुंचकर बाण मारकर रावण की नानी और राक्षस मारीच की मां ताड़का व सुबाहु का वध कर दिया। राम-लक्ष्मण ने मारीच को भी बाण मारकर सौ योजन दूर समुद्र के पार फेंक दिया। गोस्वामी तुलसीदास रचित मानस के अनुसार “सतयोजन गा सागर पारा” अर्थात सौ योजन समुद्र पार जाकर मारीच गिर पड़ा। जहां मारीच गिरा, उस स्थान को ही वर्तमान में मॉरीशस के नाम से जाना जाता है। भगवान को अभी और लीला करनी थी इसलिए उन्होंने मारीच का पूर्ण वध नहीं किया। बाद में इसी मारीच ने मृग बनकर पंचवटी में मां सीता का अपहरण कराया। पंचवटी वर्तमान में नासिक में स्थित है।

लीला में राम भक्तो ने अहिल्या उद्धार मंचन की सरहाना की । इसमें दिखाया कि ब्रम्हा की पुत्री अहिल्या ऋषि के श्राप से पत्थर बन गई। ऋषि ने श्राप देते समय कहा था कि त्रेता में जब भगवान श्रीराम आयेंगे तो उनके चरण छूने से पुनः उसी स्त्री रुप में आओगी। प्रभु का आगमन होता है और उनके चरण छूते ही अहिल्या पत्थर से अपने वास्तविक रुप में आ जाती है। बाद में वह प्रभु के चरणों में गिरकर स्वर्ग लोक को चली गयी।

इससे पहले रामलीला मंच को जनकपुर की भांति वैदेही वाटिका की तरह ही सजाया गया था। वाटिका में पुष्प चुनने के दौरान सीता-राम का प्रथम मिलन हुआ। धनुष यज्ञ से पूर्व सीता जी अपनी सखियों के साथ गौरी पूजा के लिए गईं। पूजा के लिए सीता वाटिका में फूल चुन रही थी वही दूसरी तरफ वाटिका में राम-लक्ष्मण पुष्प चुन रहे थे। वाटिका में सीता जी श्रीराम के स्वरूप को देख कर वर के रूप में चुनने की गौरी से प्रार्थना करती हैं। रामचंद्र भी सीता जी को देख कर मुग्ध हो जाते हैं। लीला में उस्ताद अशोक गोयल, वीरेंद्र कुमार वीरो, मनोज गोयल, सुनील कुमार बंसल शेरू, देवेंद्र मित्तल, मनीष सैनी मस्तु, सुंदर लाल, शिव ओम बंसल, महेश शर्मा मुलू सहित कमेटी के पधाधिकारी उपस्थित रहे।