भाजपा कार्यकर्ताओं ने अमृत महोत्सव को लेकर निकाली रैलीमहापुरुषों की प्रतिमाओं पर चला सफाई अभियान

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-राखी से अधिक जनेऊ बदलने को दिया जाता है महत्व, रक्षाबंधन से भी तात्पर्य रक्षा सूत्र के बंधन से रहता है

नैनीताल, 11 अगस्त (हि.स.)। वैश्वीकरण के दौर में लोक पर्व भी अपना मूल स्वरूप खोकर अपने से अन्य बड़े त्योहार में विलीन होते जा रहे हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों का सबसे पवित्र त्योहार माना जाने वाला ‘जन्यो पुन्यू’ यानी जनेऊ पूर्णिमा और देवीधूरा सहित कुछ स्थानों पर ‘रक्षा पून्यू’ के रूप में मनाया जाने वाला लोक पर्व रक्षाबंधन के त्योहार में समाहित हो गया है।

श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाए जाने इस त्योहार पर परंपरागत तौर पर उत्तराखंड में पंडित-पुरोहित अपने यजमानों को अपने हाथों से बनाई गई जनेऊ (यज्ञोपवीत) का वितरण आवश्यक रूप से नियमपूर्वक करते हैं, जिसे इस पर्व के दिन सुबह स्नान-ध्यान के बाद यजमानों के द्वारा गायत्री मंत्र के साथ धारण किया जाता है। इस प्रकार यह लोक-पर्व भाई-बहन से अधिक यजमानों की रक्षा का लोक पर्व रहा है।

इस दिन देवीधूरा में प्रसिद्ध बग्वाल का आयोजन होता है। साथ ही अनेक स्थानों पर बटुकों के सामूहिक यज्ञोपवीत धारण कराने के उपनयन संस्कार भी कराए जाते हैं। इस दौरान भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। भद्रा काल में रक्षाबंधन यानी रक्षा सूत्र बंधन, यज्ञोपवीत धारण एवं रक्षा धागे-मौली बांधना वर्जित रहता है। इसके अलावा भी इस दिन वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत धारण करवाकर तथा रक्षा-धागा बांधकर दक्षिणा लेते हैं। वह सुबह ही अपने यजमानों के घर जाकर उन्हें खास तौर पर हाथ से तकली पर कातकर तैयार किए गए रक्षा धागे ‘येन बद्धो बली राजा, रक्षेः मा चल मा चल’ मंत्र का उच्चारण करते हुए पुरुषों के दांए और महिलाओं के बांए हाथ में बांधते हैं। प्राचीन काल में यह परंपरा श्रत्रिय राजाओं को पंडितों द्वारा युद्ध आदि के लिए रक्षा कवच प्रदान करने का उपक्रम थी। रक्षा धागे और जनेऊ तैयार करने के लिए पंडितों-पुरोहितों के द्वारा महीनों पहले से तकली पर धागा बनाने की तैयारी की जाती है। अभी हाल के वर्षों तक पुरोहितों के द्वारा अपने दूर-देश में रहने वाले यजमानों तक भी डाक के जरिए रक्षा धागे भिजवाने के प्रबंध किए जाते थे।

उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल के नगरीय क्षेत्र में अब यह त्योहार भाई-बहन के त्योहार के रूप में ही मनाया जाता है, लेकिन अब भी यहां के पर्वतीय दूरस्थ गांवों में यह त्योहार नया जनेऊ धारण करने और पुरोहित द्वारा बच्चों, बूढ़ों तथा महिलाओं आदि सभी को रक्षा धागा या रक्षा-सूत्र बांधा जाता है। इस दिन गांव के बुजुर्ग नदी या तालाब के पास एकत्र होते हैं, जहां पंडित मंत्रोच्चार के साथ सामूहिक स्नान और ऋषि तर्पण कराते हैं। इसके बाद ही नया जनेऊ धारण किया जाता है। सामूहिक रूप से जनेऊ की प्रतिष्ठा और तप करने के बाद जनेऊ बदलने का विधान लोगों में बीते वर्ष की पुरानी कटुताओं को भुलाने और आपसी मतभेदों को भुलाकर परस्पर सद्भाव बढ़ाने का संदेश भी देता है।

पंडित की अनुपस्थिति में ‘यग्योपवीतम् परमं पवित्रम्’ मंत्र का प्रयोग करके भी जनेऊ धारण कर ली जाती है, और इसके बाद यज्ञोपवीत के साथ गायत्री मंत्र का जप किया जाता है। इस दिन बच्चों को यज्ञोपवीत धारण करवाकर उपनयन संस्कार कराने की भी परंपरा है। नैनीताल में नयना देवी मंदिर में सामूहिक यज्ञोपवीत धारण कराने का कार्यक्रम अब भी परंपरागत तौर पर होता है।

शुक्रवार को मनाया जाएगा जन्यो पुन्यू, इसी दिन होगी देवीधूरा की बग्वाल

गुरुवार को रक्षाबंधन का अवकाश होने के बावजूद कुमाऊं मंडल के अधिकांश क्षेत्रों में आज रक्षाबंधन या जन्यो पुन्यू का त्योहार नहीं मनाया गया। देवीधूरा की पत्थरमार युद्ध के नाम से प्रसिद्ध, अब फलों व फूलों से होने वाली बग्वाल भी आज नहीं हुई। अब यह कल यानी शुक्रवार को होगी।