उत्तरकाशी :- मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की भारत-तिब्बत सीमा से सटे नेलांग और जादुंग गांव सहित चमोली की नीति घाटी को इनर लाइन से बाहर करने की केंद्र से की गई मांग से उत्तरकाशी सहित राज्य के अन्य घाटी के पर्यटन उद्योग को नई उम्मीद जग गई है। प्रदेश का युवा चेहरा और केन्द्रीय नेतृत्व का विश्वास निश्चित ही अब पर्यटन उद्योग को नये पंख लगाने में उपयोगी साबित होगा।
राज्य के नये मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की यह पहल उत्तरकाशी के लिए पर्यटन की अपार संभावनाओं के द्वार खोलेगी। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है कि वह नेलांग जादुंग गांव को इनर लाइन से मुक्त करते हुए इसे पर्यटन केंद्र के रूप में मान्यता देने को लेकर आगे बढ़ेगी। या फिर मौजूदा बंदिशों और पर्यटकों को इनरलाइन परमिट के साथ ही इस क्षेत्र में सीमित समय के लिए जाना पड़ेगा।
उत्तरकाशी जनपद में गंगोत्री धाम से भैरोघाटी बैरियर के पास से नेलांग और जादुंग गांव के लिए सड़क जाती है। 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद इस इलाके को इनर लाइन घोषित कर दिया गया और नेलांग जादुंग के मूल निवासियों जिन्हें यहां बहने वाली जाड़ गंगा के कारण जाड़ भी कहा जाता है। उन परिवारों को हर्षिल के पास बगोरी में बसाया गया और उन्हें शीतकालीन प्रवास के लिए डुंडा के समीप वीरपुर में जगह दी गई। करीब 60 वर्ष बीत गये हैं इस इलाके को इनर लाइन क्षेत्र घोषित हुए। 2012 तक किसी भी आम आदमी की इस क्षेत्र में चलहकदमी पर पूर्ण प्रतिबंध था। पर्यटन की दृष्टि से भरपूर संभावनाएं देखते हुए प्रशासन ने इनरलाइन परमिट के साथ लोगों को यहां आवाजाही की अनुमति तो दे दी, फिर भी यहां रात्रि विश्राम, कैपिंग और नेलांग से आगे जाने पर पाबंदी जारी रही।
इस इलाके की व्याख्या इसी शब्द से की जा सकती है कि इसकी बनावट, भौगोलिक परिस्थिति बिल्कुल लद्दाख जैसी है। हिमालयी मरूस्थल वाला यह इलाका लद्दाख जैसा अहसास कराता है। यह रास्ता 1962 से पहले भारत -तिब्बत व्यापार का सिल्क रूट हुआ करता था। इस रास्ते तिब्बती अपने याक पर हिमालयन नमक, जड़ी-बूटी ढोकर लाते थे और बदले में भारत से जरूरी राशन और कपड़े लेकर जाते थे। इस व्यापारिक मार्ग की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तिब्बती व्यापारियों की सुगम आवाजाही के लिए भैरोंघाटी के समीप पहाड़ी के बीचों बीच एक गली काटी गई जिसे गर्तांगली का नाम दिया गया। यह मार्ग साल्ट रूट था और भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार पूरी तरह से बंद हो गया।
नेलांग जादुंग का यह इलाका जादुई है। इसे पर्यटकों के लिए खोलना बेहद जरूरी है। यहां ऐसे कई पर्यटन स्थल हैं जो आकर्षण का बड़ा केंद्र बनकर उभर सकते हैं। लद्दाख के मुकाबले इसकी दूरी दिल्ली से बेहद कम है। साल 2019 के आंकड़े बताते हैं कि लद्दाख में करीब पौने तीन लाख पर्यटक पहुंचे थे। लद्दाख की दिल्ली से दूरी एक हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है जबकि नेलांग जादुंग इलाके की दूरी करीब 600 किलोमीटर है। यानी लद्दाख के मुकाबले आधी। यदि देहरादून तक हवाई जहाज से आया जाए तो यह दूरी 250 किलोमीटर से भी कम रह जाती है। ऐसे में दिल्ली समेत एनसीआर, मध्य प्रदेश और अन्य प्रदेशों के पर्यटकों के लिए लद्दाख पहुंचने के मुकाबले नेलांग जादुंग पहुंचना ज्यादा आसान होगा। वहीं इस सीमांत इलाके में फिर से मानवीय आवाजाही होने के बाद छह दशकों से मुर्दा पड़े इलाके में दोबारा जान आ सकेगी।