तो क्या तय हो गई धरती और इंसानों के खत्म होने की तारीख

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दिल्ली। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और साइंटिस्ट एवी लोएब ने हाल ही में दुनिया भर के वैज्ञानिकों से पूछा कि आखिरकार दुनिया कब तक रहेगी? इंसानों की कौम कब तक जीवित रहेगी? धरती के खत्म होने या इंसानों के खत्म होने की तारीख क्या होगी? क्योंकि उन्हें लगता है साइंटिस्ट सही दिशा में काम नहीं कर रहे हैं. एवी लोएब ने वैज्ञानिकों से अपील की है कि वो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए काम करें. वैक्सीन बनाएं. सतत ऊर्जा के विकल्प खोजें. सबको खाना मिले इसका तरीका निकाले. अंतरिक्ष में बड़े बेस स्टेशन बनाने की तैयारी कर लें. साथ ही एलियंस से संपर्क करने की कोशिश करें. क्योंकि जिस दिन हम तकनीकी रूप से पूरी तरह मैच्योर हो जाएंगे, उस दिन से इंसानों की पूरी पीढ़ी और धरती नष्ट होने के लिए तैयार हो जाएगी. उस समय यही सारे खोज और तकनीकी विकास ही कुछ इंसानों को बचा पाएंगी।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र सम्मेलन में संबोधित करते हुए एवी लोएब ने कहा कि सबसे ज्यादा जरूरी है इंसानों की उम्र को बढ़ाना. क्योंकि मुझसे पूछा जा चुका है कि हमारी तकनीकी सभ्यता कितने वर्षों तक जीवित रहेगी. ऐसे में मेरा जवाब है कि हम लोग अपने जीवन के मध्य हिस्से में है. हमारी तकनीकी सभ्यता की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी. तब यह बच्चा था. अभी हम इसके किशोरावस्था को देख रहे हैं.  यह लाखों साल तक बची रह सकती है.  हम फिलहाल अपने टेक्नोलॉजिकल जीवन का युवापन देख रहे हैं. यह कुछ सदियों तक जीवित रह सकता है लेकिन इससे ज्यादा नहीं. यह एक गणितीय गणना के आधार पर एवी लोएब ने बताया. लेकिन क्या यह भविष्य बदला जा सकता है। एवी लोएब ने कहा कि जिस तरह से धरती की हालत इंसानों की वजह से खराब हो रही है, उससे लगता है कि इंसान ज्यादा दिन धरती पर रह नहीं पाएंगे. कुछ सदियों में धरती की हालत इतनी खराब हो जाएगी कि लोगों को स्पेस में जाकर रहना पड़ेगा. सबसे बड़ा खतरा तकनीकी आपदा का है. ये तकनीकी आपदा जलवायु परिवर्तन से जुड़ी होगी. इसके अलावा दो बड़े खतरे हैं इंसानों द्वारा विकसित महामारी और देशों के बीच युद्ध. इन सबको लेकर सकारात्मक रूप से काम नहीं किया गया तो इंसानों को धरती खुद खत्म कर देगी. या फिर वह अपने आप को नष्ट कर देगी. ये भी हो सकता है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से धरती पर इतना अत्याचार हो कि वह खुद ही नष्ट होने लगे।

गौरतलब है कि एवी लोएब ने कहा कि इंसान उन खतरों से खुद को नहीं बचा पाते जिससे वो पहले कभी न टकराए हों. जैसे जलवायु परिवर्तन. इसकी वजह से लगातार अलग-अलग देशों में मौसम परिवर्तन हो रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है. सैकड़ों सालों से सोए हुए ज्वालामुखी फिर से आग उगलने लगे हैं. जंगल आग से खाक हो रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया की आग कैसे कोई भूल सकता है। फिजिक्स का साधारण मॉडल कहता है कि हम सब एलिमेंट्री पार्टिकल्स यानी मूल तत्वों से बने हैं. इनमें अलग से कुछ नहीं जोड़ा गया है. इसलिए प्रकृति के नियमों के आधार पर हमें मौलिक स्तर पर इनसे छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है. क्योंकि सभी मूल तत्व फिजिक्स के नियमों के तहत आपस में संबंध बनाते या बिगाड़ते हैं. अगर इनसे छेड़छाड़ की आजादी मिलती है तो इससे नुकसान ही होगा।