शैली : ड्रामा भाषा : हिंदी रिलीज़ : 28 अगस्त 2020 प्लेटफार्म/ओटीटी : सोनी लिव आयु उपयुक्तता : 12+ अवधि : 1 घण्टा 44 मिनट | निर्देशन : 4.5/5 संवाद : 4/5 पटकथा : 4/5 संगीत : 3.5/5 _________________ कुल मिला के 4.5/5 |
बॉलीवुड में हर साल हज़ारो फिल्में बनती हैं जिन में ज़्यादातर 100-200-300 करोड़ क्लब के लिए बनाई जाती हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी फिल्में भी बनती है जो मसाला, मारधाड़, एक्शन इत्यादि से परे साफ सुथरी, समाज को संदेश देने वाली होती हैं। ये फिल्में करोड़ क्लब में भले ही शामिल ना हों लेकिन करोड़ों लोगों के दिल जीतने में ज़रूर कामयाब रहती है अपने कंटेंट और अदाकारियों के दम पर। पिछले कुछ दिनों में रिलीज़ हुई ‘मी रकसम’ और ‘परीक्षा’ ऐसी ही बेहतरीन फिल्में हैं। इसी कड़ी में एक नाम और जुड़ा है पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘राम सिंह चार्ली’ का।
राम सिंह चार्ली से मशहूर और उम्दा अभिनेता शारिब हाशमी ने निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा है या यूं कहा जाए कि बहुत ही धमाकेदार एंट्री ली है तो कुछ गलत नहीं होगा। फ़िल्म की कहानी है राम सिंह उर्फ चार्ली की जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी ‘जेन्गो सर्कस’ में अपने परिवार और साथियों के साथ करतब दिखाने में गुज़ारी है। सब कुछ ठीक चल रहा होता है पर तभी एक दिन सर्कस के मालिक आर्थिक नुकसान के चलते इसे बंद करने का फैसला करते हैं। यहीं से राम सिंह तथा उसके साथियों की जिंदगी पूरी तरह बिखर जाती है। ये सभी लोग अपनी मजबूरियों के चलते छोटे मोटे काम करते हैं और कई बार बेइज़्ज़त होते है।
राम सिंह की पत्नी गर्भ से है और वो इन्ही बुरे हालातों के चलते अपने परिवार को गांव भेज देता है। किसी भी सर्कस में काम ना मिलने पर वो हाथ रिकशा चलाने पर मजबूर हो जाता है। यहीं से शुरू होता है उसका संघर्ष, बाहर दुनिया से पैसा कमाने के लिए और अंदर खुद से, जिस में वो अपने अंदर के चार्ली को दफन कर देता है। कहीं ना कहीं इस घुटन के साथ वो जी तो रहा है लेकिन उसकी रूह तो अदाकारी में बसी है। एक समय ऐसा आता है जब अपनी पत्नी की ज़िद के चलते वो अपने अंदर के चार्ली को फिर से जिंदा करता है और फिर से परफॉर्म करने का फैसला करता है। लेकिन ज़िन्दगी इतनी आसान है कहाँ? क्या चार्ली का ये संघर्ष कभी खत्म होगा? क्या चार्ली फिर से स्टेज पर उतरेगा? क्या उसका अपना सर्कस शुरू करने का सपना वाक़ई पूरा होगा? ये जानने के लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी।
फ़िल्म के कई मज़बूत पक्ष है जिन में से सबसे महत्वपूर्ण है कलाकारों की अदाकारी जो एक से बढ़ कर एक है। फ़िल्म की जान है पूरी तरह अपने किरदार में घुस जाने वाले कुमुद मिश्रा। अगर ये कहा जाए कि ये पूरी तरह से कुमुद मिश्रा की फ़िल्म है तो इस में कुछ गलत नही होगा। कुमुद बॉलीवुड की कई फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं लेकिन यहां वो एक अलग स्तर पर हैं जिसे छू पाना लगभग नामुमकिन सा है। फ़िल्म के एक सीन में राम सिंह अपनी परछाई चार्ली से कहता है कि वो एक लिबास नही बल्कि उसकी त्वचा है और त्वचा के बगैर कोई कैसे आरामदेह महसूस कर सकता है। ठीक वैसे ही असल में रामसिंह चार्ली का किरदार उनकी त्वचा की तरह लगता है। इतनी शिद्दत से निभाया गया किरदार है जो आपको हँसाने और रुलाने का दम रखता है। इस किरदार के कई भाव हैं जो कि न सिर्फ एक कलाकार है बल्कि दुख, मजबूरी, सबके बावजूद खुश दिखना, अपने अंदर के कलाकार को दफन करना और भी बहुत सारे, लेकिन आप कहीं कोई गलती ढूंढ सको तो ढूंढ लो। और तो और ऐसा लगता है कि कुमुद को साथी कलाकरों और डायलॉग्स की भी ज़रूरत नही, इस बेहतरीन स्तर का अभिनय रहा है उनका। कोई भी अवार्ड इस तरह के अभिनय के लिए छोटा है।
चार्ली की पत्नी कजरी के रूप में दिव्या दत्ता लाजवाब है। कई जगह वो सिर्फ अपनी आंखों के ज़रिए अभिनय करती दिखती है और ये जताती हैं कि क्यों वो एक बेहतरीन कलाकार के रूप में जानी जाती है। फ़िल्म के एक गीत ‘रतिया रे’ में बिना एक शब्द बोले वो आंखों से सब कह जातीं है।
एक छोटे से रोल के बावजूद मास्टरजी के नाम से मशहूर सर्कस की मालकिन के किरदार में सलीमा रज़ा ने बेहतरीन अभिनय किया है। उभरते कलाकार फारूख सेयर शाहजहाँ के किरदार में अपने बेहद स्वाभाविक अभिनय से एक अलग छाप छोड़ जाते हैं। अन्य साथी कलाकरों का अभिनय भी अच्छा है।
फ़िल्म का संगीत अच्छा है। फ़िल्म में तीन गीत हैं जिस में से ‘रतिया रे’ सबसे बेहतरीन है। फ़िल्म के डायलॉग्स की भी तारीफ करनी होगी जिन्हें शारिब हाशमी और नितिन कक्कर ने लिखा है।
मैं फ़िल्म के निर्देशक नितिन कक्कर को बधाई और शाबाशी देना चाहूंगा जिन्होंने एक बेहतरीन, साफ सुथरी, दिल को छू देने वाली पारिवारिक फ़िल्म बनाई है जो आपके चेहरे पर मुस्कान और आंसू दोनों लाने की क्षमता रखती है। ये फ़िल्म संदेश भी देती है कि कितने भी संघर्ष हों, सपने देखना नही छोड़ना चाहिए और उन सपनों को पूरा करने के लिए कोई कसर भी नहीं छोड़नी चाहिए। अपने काम के प्रति जुनून होना चाहिए और किसी को नुकसान पहुंचाए या दुख पहुंचाए बगैर जिस काम में खुशी मिलती हो उसे ज़रूर करना चाहिए। सपनो की उड़ान भरने का हक़ सभी को है। अंत में शुक्रिया शारिब हाशमी का भी जिन्होने अच्छे सिनेमा और कंटेंट में हमारा विश्वास ज़िंदा रखा। पूरी टीम को बधाई एक बेहतरीन फ़िल्म देने के लिए जो हर रोज़ नही देखने को मिलती।

दीपक चौधरी