भारत के सबसे बड़े रक्षा सौदे में 64 हजार करोड़ में फ्रांस से मिले 26 राफेल!

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भारत और फ्रांस के बीच समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए राफेल मरीन फाइटर जेट के सौदे पर सोमवार को औपचारिक रूप से हस्ताक्षर किए गए। यह डील लगभग 64 हजार करोड़ रुपये की है, जो भारत का अब तक का सबसे बड़ा रक्षा सौदा माना जा रहा है। इस समझौते के अंतर्गत भारत को 26 राफेल मरीन फाइटर जेट मिलेंगे, जिनमें 22 सिंगल सीटर तथा 4 ट्विन सीटर विमान शामिल हैं। इस सौदे के साथ, भारतीय नौसेना के पास अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की ताकत बढ़ेगी।

फ्रांसीसी कंपनी डैसो एविएशन, जो राफेल जेट का निर्माण करती है, ने डील के अनुसार पहले विमान का प्रदर्शन डेढ़ वर्ष में करने का वादा किया है। भारत को पहला राफेल एम विमान 2028 में सौंपा जाएगा, और उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक सभी विमान भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हो जाएंगे। इनमें से अधिकांश विमानों को स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर जैसे आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विक्रमादित्य पर तैनात किया जाएगा। इस डील के बाद, भारत के पास राफेल जेट की कुल संख्या 62 हो जाएगी।

इस अनुबंध के अनुसार, मौजूदा राफेल बेड़े के लिए अतिरिक्त उपकरणों की खरीद भी की जाएगी। भारत के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार, इस समझौते के तहत राफेल के फ्यूजलेज का निर्माण भारत में ही किया जाएगा। इसके अलावा, विमान के इंजनों, उपकरणों, सेंसर्स और हथियारों की मरम्मत एवं ओवरहॉल के लिए स्थानीय साझेदार तैयार किए जाएंगे। यह न केवल स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत की रक्षा क्षमता को भी मजबूती प्रदान करेगा।

राफेल मरीन जेट्स की विशेषताओं की बात करें तो, ये विमान एक मिनट में 18,000 मीटर की ऊँचाई तक पहुँचने में सक्षम हैं। इसके अलावा, ये 3,700 किलोमीटर दूर तक हमला करने की क्षमता रखते हैं, जो इन्हें अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन के मुकाबले में विशेष रूप से प्रभावी बनाता है। इस प्रकार का सैन्य प्रशिक्षण और तकनीकी विकास भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण ताकत बनाने में मदद करेगा।

इस साझेदारी के माध्यम से भारत और फ्रांस के बीच संबंध और अधिक मजबूत होंगे, जिससे दोनों देशों के बीच सहकार्य तथा समरूपता को बढ़ावा मिलेगा। रक्षा क्षेत्र में इस तरह के सौदे केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ नहीं करते, बल्कि आर्थिक स्थिरता और कानूनी पहलुओं में भी मददगार साबित होते हैं। इस महत्वपूर्ण डील के साथ, भारतीय नौसेना को वैश्विक समुद्री सुरक्षा के संदर्भ में एक नई दिशा मिलेगी।