विभिन्न मुद्दों पर बातचीत करने वाली अभिनेत्री संदीपा धर ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कश्मीर के हालात पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि कैसे उनके परिवार ने कश्मीरी पंडितों के रूप में पलायन का दर्द झेला है। उनके माता-पिता को अपनी जड़ें छोड़कर दूसरे राज्य में जाकर एक नए जीवन की शुरुआत करनी पड़ी। संदीपा ने अपनी भावनाओं को साझा करते हुए बताया कि जब भी वे अपने मूल स्थान, कश्मीर, जाती हैं, तो एक गहरी चिंता और डर का अहसास होता है। उन्होंने पहलगाम हमले की घटना पर भी गहरी चिंता व्यक्त की, जिसे उन्होंने बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
संदीपा ने कहा कि पहलगाम में जिस प्रकार की घटनाएं होती रही हैं, वे पहले आम थीं, लेकिन अब उनमें कमी आई है। फिर भी, जब ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं, तो यह उन्हें बहुत दुखी और गुस्से में डाल देती हैं। उनका कहना है कि कश्मीर में जब एक महिला अपने बच्चे के साथ भाग रही थी, और पीछे फायरिंग हो रही थी, वह दृश्य बेहद खौफनाक था। उनका यह मानना है कि भारत जैसे देश में समय के साथ विकास हो रहा है, लेकिन कश्मीर में पिछले 35 सालों से ऐसे हालात बने हुए हैं। संदीपा ने सरकार से यह भी अपील की है कि इस विषय में कुछ ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि ऐसे दर्दनाक अनुभव दोबारा न हों।
इस घटना ने संदीपा को यह समझने पर मजबूर कर दिया है कि सभी लोग भारत को एक सुरक्षित स्थल मानते हैं, लेकिन जब अपनी ही भूमि पर ऐसा होता है, तो दुःख और गुस्सा स्वाभाविक है। उन्होंने यह भी बताया कि जब वे पिछले साल कश्मीर गई थीं, तब सब कुछ सामान्य लग रहा था। हालाँकि, जैसे ही उन्होंने हाल ही में पहलगाम का दौरा किया, उन्हें वहां सेना की तैनाती के बावजूद असुरक्षा का अहसास हुआ। संदीपा ने सवाल उठाया कि इतनी सुरक्षा के होते हुए भी आतंकवादी कैसे अपनी मनमानी कर रहे हैं?
संदीपा ने भारतीय जनता को याद दिलाया कि भारतीय लोग सहिष्णु होते हैं, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में उनकी सहिष्णुता को कमजोर नहीं होना चाहिए। उन्हें लगता है कि अब समय आ गया है कि भारतीयों को अपने हक के लिए खड़ा होना चाहिए और आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। उनका कहना है कि जब उनकी तरह लाखों परिवारों ने अपने घरों और जायदाद को छोड़ा है, तब हमारे लिए सब कुछ सामान्य हो जाना असंभव है।
आखिर में, संदीपा ने अपने माता-पिता के डर का उल्लेख किया, जब वे कश्मीर जाने का निर्णय लेते हैं। उनके लिए कश्मीर वापस जाना, सच में एक मानसिक कष्ट बन चुका है। उन्होंने इसे राजनीतिक प्रणाली की विफलता बताया और यह भी स्पष्ट किया कि इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है। संदीपा के ये विचार केवल उनकी व्यक्तिगत भावनाएं नहीं हैं, बल्कि यह उन लाखों कश्मीरी पंडितों के दर्द का भी प्रतीक हैं, जिन्हें अपनी मातृभूमि तथा सुरक्षा का अधिकार नहीं मिल पा रहा है।