महाकुंभ स्थल का खुलासा: ड्रोन VIDEO में देखें खाली पंडाल और टूटते पांटून पुल!

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प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन एक अनोखा अनुभव होता है, जहां विश्व के विभिन्न हिस्सों से लाखों श्रद्धालु आते हैं। हाल ही में, दैनिक भास्कर ने अपने ड्रोन के माध्यम से इस स्थल की तस्वीरें कैद की हैं, जिससे ये स्पष्ट होता है कि महाकुंभ के बाद यह स्थान अब किस तरह नज़र आता है। इस महान मेले के दौरान तात्कालिक रूप से निर्मित तंबू का शहर, अब अदृश्य हो चुका है, और उसकी जगह अब केवल खाली भूमि और अवशेष हैं।

महाकुंभ का आयोजन 45 दिनों तक चलता है, जब गंगा और यमुना की धाराएं अपने पूरे वेग में होती हैं। इन नदियों का महिमामंडन तमाम श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। बारिश के समय इन नदियों का विकराल रूप देखने लायक होता है। महाकुंभ के दौरान, सेक्टर 20 में सभी 13 अखाड़ों के शिविर स्थापित थे, जहां दिन-रात भक्तों की भीड़ उमड़ती रही। अब वह जगह सुनसान हो चुकी है, जबकि सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से तैयार की गई संरचनाएं और पंडाल हटा दिए गए हैं।

हालांकि, महाकुंभ का समापन हो गया है, लेकिन प्रतिदिन लगभग 50 हजार श्रद्धालु संगम पर स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं। ये लोग गंगा, यमुना के संगम पर आकर अपनी आस्था को और भी मजबूती से व्यक्त कर रहे हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से यह स्थल अब भी महत्वपूर्ण बना हुआ है, और श्रद्धालुओं की आस्था से प्रकट होता है कि बावजूद मेले के अंत के, संगम का पानी उनके लिए विशेष स्थान रखता है।

महाकुंभ के अनुभव का प्रभाव न केवल उस समय होता है, बल्कि यह स्थान साल भर लोगों के लिए प्रेरणादायी बना रहता है। बारिश के मौसम में नदियों का उग्र रूप देखकर यह साफ हो जाता है कि प्राकृतिक परिदृश्य के साथ भी श्रद्धालुओं का गहरा जुड़ाव होता है। स्नान, पूजा और अन्य धार्मिक क्रियाकलाप इसी नगरी की पहचान हैं, जो समय के साथ-साथ जारी रहते हैं।

इस प्रकार, महाकुंभ के बाद का प्रयागराज एक नई दृष्टि को दर्शाता है। पहले जैसा व्यस्त और जीवंत जाल अब वीरान है, फिर भी सर्दियों में संगम की ओर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दर्शाती है कि आस्था की गहराई किसी भी दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण होती है। भविष्य में भी यह स्थल अपनी धर्मिक महत्ता को बनाए रखेगा, और हर साल यह श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहेगा।