मुक्तसर में किसानों का बड़ा प्रदर्शन: ट्रेन रोकी, सरकार पर उपेक्षा का आरोप

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पंजाब के मुक्तसर जिले में बुधवार को किसान यूनियन ने अपनी मांगों को लेकर एक बड़ा आंदोलन आयोजित किया। इस दौरान गिद्दड़बाहा, मलोट और मुक्तसर स्थित तीन रेलवे स्टेशनों पर किसानों ने तीन घंटे तक रेल रोको प्रदर्शन किया। किसानों ने केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की, जिससे उनकी नाराजगी का स्पष्ट संकेत मिला। विभिन्न किसान संगठनों के सदस्य, जिन्हें अपने मुद्दों के लिए आवाज उठाने का यही एक सही तरीका नजर आ रहा है, रेलवे ट्रैक पर जाम लगाकर अपनी मांगें रखने के लिए एकत्रित हुए थे।

इस आंदोलन में शामिल किसान नेताओं ने स्पष्ट तौर पर कहा कि केंद्र सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज कर रही है। किसानों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया है, क्योंकि उन्हें दिल्ली जाने के लिए ट्रैक्टर-ट्रॉलियों का इस्तेमाल करने से रोका गया था। उन्होंने अब पैदल जत्थे के रूप में अपनी यात्रा करने का निर्णय लिया है, ताकि उनकी आवाज को और भी मजबूती से सुना जा सके। प्रदर्शनकारियों ने बताया कि सरकार उनके हकों का उल्लंघन कर रही है और शंभू और खनौरी बॉर्डर पर उन्हें रोकने के लिए पुलिसिया कार्रवाई की जा रही है, जिसमें पानी की बौछारें और आंसू गैस का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह सभी कार्रवाई किसानों के प्रति अन्यायपूर्ण और अमानवीय बताई गई।

किसान नेताओं ने इस बात पर भी चिंता जताई कि मरण व्रत पर बैठे किसान नेता डल्लेवाल की तबीयत बिगड़ रही है, लेकिन सरकार की अनदेखी इसी तरह जारी है। किसानों के सीमित लेकिन स्पष्ट अधिकारों की अवहेलना करने के कारण यह आंदोलन जरूरी बन गया है। किसान संगठन ने ऐलान किया कि यह रेल रोको आंदोलन केवल एक शुरुआत है, और आगामी दिनों में भी इसी तरह के प्रदर्शन जारी रहेंगे, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं।

इस प्रदर्शन में हरजिंदर सिंह, बूटा सिंह, अंग्रेज सिंह, जिंमी बराड़, बलजीत सिंह, संदीप बरीवाला, जीवन सिंह, राजू महल, और गुरप्रीत सिंह जैसे काबिल नेता शामिल हुए। यह आंदोलन इस बात का प्रतीक है कि किसानों की एकजुटता और दृढ़ संकल्प उन्हें अपने हक के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है। कृषि कानूनों को लेकर जारी विवाद और किसानों के अधिकारों की ओर सरकार की चुप्पी ने उनके संघर्ष को और भी मजबूत किया है।

किसानों ने यह स्पष्ट किया है कि उनका आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगों को सुनवाई नहीं मिल जाती। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को किसानों के हितों का ध्यान रखने की आवश्यकता है, अन्यथा इस संघर्ष में और भी बढ़ोतरी होगी। उनके द्वारा उठाई गई आवाज अब एक आंदोलन का रूप ले चुकी है, जो आगे की दिशा में और तेज गति से बढ़ती नजर आएगी।