चंडीगढ़ के सेक्टर-16 स्थित जनरल अस्पताल (जीएमएसएच) में कोविड-19 महामारी के कारण बंद हुए नशामुक्ति केंद्र को अब चार साल बाद पुनः खोला जाने जा रहा है। यह नशामुक्ति केंद्र लगभग 10 वर्ष पहले स्थापित किया गया था, लेकिन इसे कोविड सेंटर में तब्दील कर दिया गया था। स्वास्थ्य निदेशक डॉ. सुमन सिंह ने इस केंद्र के पुनरारंभ के बारे में जानकारी दी, जिसमें बताया गया कि इसे 10 बेड की क्षमता के साथ फिर से शुरू किया जाएगा। वर्तमान में अस्पताल में केवल दो साइकेट्रिस्ट कार्यरत हैं, जो नशे की लत से पीड़ित मरीजों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य के मामलों का इलाज कर रहे हैं। इस क्षेत्र में नशीली दवाओं के बढ़ते उपयोग से प्रभावित मरीजों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ गई है।
पीजीआई के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख प्रो. देबाशीष बसु ने बताया कि नशे की प्रवृत्ति और शराब के दुरुपयोग के तरीकों में काफी बदलाव आ गया है। उन्होंने कहा कि समाज कल्याण विभाग द्वारा कुछ प्रयास किए गए हैं, लेकिन नशामुक्ति का समाधान केवल केंद्रों तक सीमित नहीं होना चाहिए। प्रो. बसु ने ज़ोर देते हुए कहा कि हमें नशामुक्ति के लिए नए तरीके अपनाने और बेहतर संसाधनों की आवश्यकता है।
मुख्य चिकित्सकों के अनुसार, चंडीगढ़ स्थित पीजीआई इस क्षेत्र का एकमात्र प्रमुख संस्थान है, और मरीजों की संख्या में वृद्धि के चलते 24 घंटे उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए और अधिक स्टाफ की आवश्यकता है। वर्तमान में डॉक्टरों की कमी और अन्य सुविधाओं के अभाव के चलते पंजाब में अनियमित निजी नशामुक्ति केंद्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो इस गंभीर समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं।
हाल ही में पीजीआई द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2023 में नशामुक्ति ओपीडी में 36,683 मरीज पहुंचे, जिनमें से 12,570 मरीज चंडीगढ़ से थे, जबकि 24,112 अन्य राज्यों से आए थे। इनमें से अधिकांश मरीज 26-35 वर्ष की आयु समूह में थे। नशे का प्रमुख कारण ओपिओइड और सिंथेटिक दवाओं का बढ़ता उपयोग है, जबकि शराब और तंबाकू का सेवन भी आम हो गया है। वरिष्ठ मनोचिकित्सकों का मानना है कि नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता और मनोवैज्ञानिक परामर्श ही इस समस्या से निपटने का पहला कदम है।
समाज में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नशामुक्ति केंद्र का पुनः उद्घाटन न केवल मरीजों के लिए एक राहत का स्रोत होगा, बल्कि यह स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी मजबूत बनाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हम नशे की समस्या से प्रभावी रूप से निपटना चाहते हैं, तो हमें न केवल उपचार केंद्रों की संख्या बढ़ानी होगी बल्कि जागरूकता और शिक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि लोग नशे के नकारात्मक प्रभावों को समझ सकें और समय पर सलाह लेने के लिए प्रोत्साहित हो सकें।