बठिंडा में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने अमित शाह का पुतला जलाते हुए जमकर नारेबाजी की। पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाया है कि गृहमंत्री ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का अपमान किया है, जिसके लिए उन्हें पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता नील गर्ग ने स्पष्ट कहा कि अमित शाह ने अंबेडकर के प्रति अपशब्दों का इस्तेमाल किया है, जिसे सुनकर हर हिंदुस्तानी का दिल टूट गया है। उनका कहना है कि अमित शाह को अपने द्वारा कहे गए शब्दों को तुरंत वापस लेना चाहिए।
गर्ग ने इस मौके पर बीते वर्षों में दलित और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों का भी जिक्र किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारतीय जनता पार्टी की मानसिकता ऐसी है कि जहां भी उनकी सरकार होती है, वहां दलित समुदाय और महिलाओं पर अत्याचार के मामले बढ़ जाते हैं। उनका आरोप है कि 1997 में लेखक अरुण शोरी ने अपनी एक पुस्तक में बाबा साहेब को अंग्रेजों का मोहरा कहा था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार राजनीतिक दलों द्वारा अंबेडकर के विचारों का अपमान किया जा रहा है।
नील गर्ग ने आगे कहा कि अंबेडकर ने संविधान के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं थीं। उन्होंने बताया कि यदि संविधान गलत हाथों में हो, तो वो अधिक सुरक्षित नहीं रह सकता। उनका कहना था कि आज के भारत में यही स्थिति है। गृहमंत्री अमित शाह के बयान ने इस सच को और भी स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि बाबा साहेब का योगदान हमारे समाज में कितना महत्वपूर्ण है और ऐसे में उनके प्रति अपशब्दों का प्रयोग करना पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
सामाजिक न्याय और असमानता को दूर करने की दिशा में आम आदमी पार्टी ने हमेशा से आवाज उठाई है। उनका मानना है कि दलितों और अन्य कमजोर वर्गों के अधिकारों का संरक्षण जरूरी है। इसीलिए, गृहमंत्री अमित शाह का अपमानजनक बयान उनके लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है। नील गर्ग ने यह भी कहा कि प्रत्येक भारतीय को इस बेहद संवेदनशील विषय पर सक्रियता से विचार करना चाहिए और एकजुट होकर अंबेडकर के आदर्शों की रक्षा करनी चाहिए।
प्रदर्शन के दौरान आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मांग की कि गृहमंत्री को अपने शब्दों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। उनका यह प्रदर्शन केवल एक राजनीतिक नाराजगी का इजहार नहीं बल्कि भारतीय समाज में समानता और सम्मान की मांग का भी हिस्सा है। बठिंडा में हुआ यह विरोध प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि सामाजिक एकता और न्याय के लिए हुई आवाजें अब अधिक सशक्त हो चुकी हैं।