हर्षोल्लास के साथ मनाई गई जलाराम बापा की जयंती, समाजजन हर्षित

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हर्षोल्लास के साथ मनाई गई जलाराम बापा की जयंती, समाजजन हर्षित

धमतरी, 8 नवंबर (हि.स.)। गुजराती समुदाय द्वारा शुक्रवार काे श्री जलाराम की 225 वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई। अलसुबह श्री जलाराम मंदिर में मंगला दर्शन एवं सामूहिक दीप आरती के बाद गुजराती समाज भवन से प्रभात फेरी निकाली गई, जिसमे समाज के समस्त सदस्यों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

गुजराती समाज के गुरु जलाराम बापा की जयंती के अवसर पर श्री जलाराम मंदिर समिति और गुजराती समाज द्वारा विभिन्न कार्यक्रम रखे गए। जयंती कार्यक्रम कार्तिक माह के सप्तमी तिथि को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इस अवसर पर धमतरी में समाज द्वारा अलग-अलग कार्यक्रम रखे गए। सुबह पांच बजे आरती पश्चात प्रभात फेरी निकाली गई जो घड़ी चौक से सिहावा चौक होते हुए वापस गुजराती समाज भवन पहुंची। शाम को गुजराती समाज भवन से श्री जलाराम बापा की शोभायात्रा निकली जो बनियापारा होते हुए जलाराम मंदिर, गोल बाजार होते हुए घड़ी चौक, रत्नाबांधा चौक, देवश्री टाकीज होते हुए लगभग आठ बजे गुजराती समाज भवन पहुंची। आरती के बाद प्रसादी का वितरण किया गया। दोपहर में जलाराम मंदिर में प्रसादी का वितरण भी किया गया। इस अवसर पर मुकेश रायचुरा, राकेश लोहाणा, संतोष शाह, आदित्य कोठारी, गौरव लोहाणा तृप्ति मानेक, कल्पना आठा, गौरव लोहाना, जसवंती रायचूरा, शांति दामा रेखा लोहाणा, मंजू बेन लोहाना, मनी बेन, छाया लोहाना, राकेश बेन लोहाना, ममता राजपुरिया, हर्षा लोहाणा सहित काफी संख्या में गुजराती समाज के लोग मौजूद थे।

कौन थे जलाराम बापा

जलाराम बापा का जन्म 1799 में कार्तिक महीने की सप्तमी तिथि को गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर में हुआ था। उनके पिता प्रधान ठक्कर और माता राजबाई ठक्कर लोहाना वंश से थीं। वे भगवान राम के भक्त थे। जलाराम बापा हालांकि गृहस्थ जीवन जीने के लिए तैयार नहीं थे और अपने पिता के व्यवसाय की देखभाल करते रहे। वे ज़्यादातर तीर्थयात्रियों, साधुओं और संतों की सेवा में लगे रहते थे। उन्होंने खुद को अपने पिता के व्यवसाय से अलग कर लिया। 18 वर्ष की आयु में हिंदू पवित्र स्थानों की तीर्थयात्रा से लौटने के तुरंत बाद जलाराम बापा फतेहपुर के भोज भगत के शिष्य बन गए। जिन्होंने उन्हें अपना शिष्य स्वीकार कर लिया। जलाराम को उनके गुरु भोजल राम ने राम के नाम पर गुरु मंत्र और जप माला दी थी। अपने गुरु के आशीर्वाद से उन्होंने सदाव्रत नामक भोजन केंद्र शुरू किया। एक ऐसा स्थान जहां सभी साधु-संत और साथ ही ज़रूरतमंद लोग किसी भी समय भोजन कर सकते थे।