हिसार : कृषि मेलेे में किसानों ने खरीदे दो करोड़ 39 लाख से अधिक के बीज

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हिसार : कृषि मेलेे में किसानों ने खरीदे दो करोड़ 39 लाख से अधिक के बीज

हरियाणा सहित पड़ोसी राज्यों के किसानों ने भारी संख्या में की मेले में शिरकत

एचएयू में ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ पर दो दिवसीय कृषि मेला संपन्न

हिसार, 17 सितंबर (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में दो दिवसीय कृषि मेला (रबी) में केवल हरियाणा ही नहीं, बल्कि पड़ौसी राज्यों के किसानों ने भी भारी संख्या में शिरकत की। इस वर्ष कृषि मेले का थीम ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ रहा। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए 262 स्टालें लगाई गई। मेले में किसानों को रबी फसलों की उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज व कृषि साहित्य भी उपलब्ध करवाए साथ ही मिट्टी-पानी की जांच की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने मंगलवार को मेले के समापन अवसर पर बताया कि हकृवि द्वारा इजाद की गई किस्मों की पैदावार ज्यादा व गुणवत्ता से भरपूर होने के कारण किसानों के बीच में उनकी मांग ज्यादा रहती है। विश्वविद्यालय अब तक 295 उन्नत किस्में विकसित कर चुका है तथा इन किस्मों की अन्य प्रदेशों में मांग बढ़ रही है। मेले में विश्वविद्यालय की गेंहू की कम पानी में उगाई जाने वाली डब्ल्यूएच 1142 व 1184, राया की आरएच 1424 व आरएच 761 तथा चारे वाली फसल मल्टीकट जई की एचजे 8 व एचएफओ 707 जैसी नई किस्मों की काफी मांग रही। मेले में आए किसानों ने जहां सब्जियों के, फलदार पौधों के बीज खरीदे वहीं प्रदर्शन प्रक्षेत्र पर लगी हुई उन्नत किस्मों के प्रदर्शन प्लाटों का भी भ्रमण किया। मेले में नवीनतम कृषि पद्यतियों को जानने के अलावा उनके तकनीकी बुलेटिन भी किसानों के लिए मुख्य आकर्षण रहते हैं।

साथ ही प्रश्नोत्तरी सत्र में किसानों ने अपनी खेती संबंधी समस्याओं के निदान मिलते हैं व उन्हे कृषि वैज्ञानिकों से मिलने का मौका भी मिलता है। इस वर्ष के मेले का थीम ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ इसीलिए रखा गया है ताकि किसानों को इसके प्रति जागरूक किया जा सके। वर्तमान समय में हमें फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर जीवांश की मात्रा बढ़ाने, फसल विविधिकरण अपनाने के साथ-साथ जल संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान देने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए कम पानी में उगाई जाने वाली किस्मों के साथ-साथ फलदार पौधों व वृक्षारोपण को भी बढ़ाने की जरूरत है।