(एक) रखिए सोच विचार
अपनी बारी आप भी, रखिए सोच विचार।
आने को है सामने, बचे दिवस दो चार।।
बचे दिवस दो-चार, फिर लौट चुनाव आया।
जोड़ घटा कर रखें, कौन कितना भरमाया।।
रखिए मुनि कविराय, पास तो खुन्नस इतनी।
आगे न दिखा सके, कोई ढिंठाई अपनी।।
(दो) जो भी करा लें वादा
लेकर निकल पड़े चतुर,राजनीति का फांस।
आपको राजा खुद को, बता रहे सब दास।।
बता रहे सब दास, ना इच्छा उनकी ज्यादा।
कुर्सी एक देकर , जो भी करा लें वादा।।
कवि संभल जाइए, अब सुनिए कान देकर।
चल पड़े बहेलिए, साथ फंदा जाल लेकर।।
(तीन) सधे खिलाड़ी, दो-दो हाथ
बिछ गई है चौपड़ फिर, लेकर पासे साथ।
सधे खिलाड़ी जुट रहे, करने दो-दो हाथ।।
करने दो-दो हाथ, उछाल रहे सब पासा।
है सबकी जेब में , भरा जीत का बतासा।।
कहते मुनि कविराय, सपने उनके अंतरिक्ष।
खातिर जिसके सभी,जा रहे कदमों में बिछ।।
(कुण्डलिया दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है। इस छंद के छह चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 24 मात्रा होती हैं।)