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29HREG85 गंगा को मात्र एक नदी की तरह नहीं, भारत की पहचान और धरोहर के रूप में देखना होगा

—धरोहर की तरह संरक्षित करें गंगा को, 30 मई गंगा दशहरा पर विशेष

वाराणसी, 29 मई (हि.स.)। गंगा दशहरा मंगलवार को है। गंगा दशहरा को लेकर मान्यता है कि इसी दिन राजा भगीरथ की घोर तपस्या के पश्चात मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था। श्री रामचरित मानस के अयोध्या कांड में गोस्वामी तुलसीदास ने जीवनदायिनी मां गंगा का मनोहारी वर्णन करते हुए लिखा है कि ‘गंग सकल मुद मंगल मूला, सब सुख करनि हरनि सब सूला।’ अर्थात गंगा समस्त आनंद-मंगलों की मूल हैं। वे सब सुखों को करने वाली और सब पीड़ाओं का हरने वाली हैं।

पुराणों में कहा गया है कि राजा भगीरथ वर्षों की तपस्या के उपरांत ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए। भारतीय शास्त्र, पुराण एवं उपनिषद इत्यादि सभी ग्रंथों में गंगा की महिमा और महत्ता का बखान किया गया है। स्कंद पुराण व वाल्मीकी रामायण में गंगा अवतरण का विशद उल्लेख है। नमामि गंगे के काशी क्षेत्र संयोजक राजेश शुक्ला कहते हैं कि गंगा भारतीय संस्कृति की प्रतीक एवं हजारों साल की आस्था की पूंजी है।

शास्त्रों में कहा गया है कि गंगा का पानी अमृत व मोक्षदायिनी है। गंगा का जितना धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व है उतना ही आर्थिक भी। भारत गांवों और नदियों का देश है। गांव और नदियों का संबंध सदियों पुराना है। गंगा का पानी कृषि व उद्योगधंधों के लिए प्राणवायु है।राजेश शुक्ल ने कहा कि भारत नदियों का देश है। देश के आर्थिक-सांस्कृतिक विकास में नदियों का अहम योगदान है। नदियां भारतीय संस्कृति और सभ्यता की पर्याय हैं। नदी घाटियों में ही आर्य सभ्यता पल्लवित और पुष्पित हुई। देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे स्थित हैं। देश के अधिकांश धार्मिक स्थल किसी न किसी रुप में नदियों से संबंद्ध हैं। नदियां देश की बड़ी आबादी को अपने जल से उर्जावान करती हैं। लिहाजा नदियों को निर्मल बनाए रखने के लिए जितना सख्त कानून की जरुरत है उससे कहीं अधिक पर्यावरण प्रेमियों, समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों और संत समाज की सार्थक भागीदारी निभाने की जरुरत है। यह सच्चाई है कि नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए किस्म-किस्म के कानून गढ़े गए हैं। लेकिन नदियां अभी भी प्रदूषण से कराह रही है। कुछ वर्ष पूर्व उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना नदी को जीवित व्यक्ति सरीखा दर्जा दिए जाने का अभूतपूर्व फैसला दिया है।

शुक्ल ने कहा कि गंगा एवं अन्य नदियों की दुगर्ति के लिए सिर्फ उसमें बहाए जाने वाले शव या मूर्तियां ही जिम्मेदार नहीं हैं। सीवर और औद्योगिक कचरा भी उतना ही जिम्मेदार है। उचित होगा कि नदियों के तट पर बसे औद्योगिक शहरों के कल-कारखानों के कचरे और शहर के सीवर को गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिरने से रोका जाए और ऐसा न करने पर कल-कारखानों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए ।

राजेश शुक्ल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गंगा के लिए जो कार्य किए जा रहे हैं वे पहले कभी नहीं हो पाए थे । नमामि गंगे प्रोजेक्ट के जरिए गंगा की निर्मलता और पवित्रता बनाए रखने का प्रयास हो रहा है। इस प्रोजेक्ट पर हर वर्ष हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। नमामि गंगे परियोजना के सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं । अच्छी बात यह है कि देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश इस दिशा में ठोस पहल कर रहा है।

उन्होंने कहा कि जीवनदायिनी गंगा एवं अन्य नदियों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार छोड़ आस्था एवं परंपरा का निर्वहन मानवता के लिए किया जाए। गंगा को मात्र एक नदी की तरह नहीं, बल्कि भारत की पहचान और धरोहर के रूप में देखना होगा ।