-चार माह के लिए मांगलिक कार्यों पर विराम, संतों का चातुर्मास शुरू
वाराणसी, 10 जुलाई (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में हरि शयनी एकादशी पर श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा नदी में आस्था का डुबकी लगाई और गंगा तट पर गरीबों में अन्न, वस्त्र का दान, पुण्य किया। घरों में तुलसी की पूजा की गई। हरिशयनी एकादशी से ही चराचर जगत के स्वामी भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषशैया पर योग निद्रा में लीन हो गए। इसी के साथ पूरे चार महीने तक मांगलिक कार्यों पर भी विराम लग गया।
सनातनी पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानी हरि शयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। संतों, संन्यासियों का चातुर्मास व्रत भी एकादशी से प्रारम्भ हो गया। ज्योतिषविद आचार्य मनोज पाठक ने बताया कि हरि शयनी एकादशी से भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं। इस वजह से किसी तरह के मांगलिक कार्य नहीं कराए जाते हैं। चार नवंबर कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी को श्रीहरि विष्णु के नींद से जागने के बाद वैवाहिक कार्य शुरू होंगे। सनातन धर्म में हरिशयनी एकादशी पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने से श्रद्धालुओं को सहस्र गोदान का फल मिलता है। इसके साथ चातुर्मास की शुरुआत होगी। आने वाले चार माह तक तप, साधना और उपवास और तीज-त्योहार का उल्लास रहेगा। संतों के सान्निध्य में आत्मकल्याण होगा। पूरे चार माह तक भगवान श्रीहरि के पूजन अर्चन से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस चार महीने सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक में साधु-संत जन कल्याण के लिए एक स्थान पर निवास करके सत्संग आदि करते हैं।
आचार्य मनोज पाठक बताते हैं कि चातुर्मास वर्षाकाल का समय होता है। इस समय साधु-संत एक स्थान पर रहकर साधनाएं संपन्न करते हैं। निरंतर विहार करते रहने वाले संत-मुनि चातुर्मास में एक स्थान पर ठहर जाते हैं। चातुर्मास में तप-साधना आदि के साथ कुछ नियमों का पालन भी करना होता है। जैसे पूरी अवधि में सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करते हुए दिन में सिर्फ एक बार ही घर में बना भोजन करना होता है। इस पूरी अवधि में क्रोध, झूठ, ईर्ष्या, अभिमान आदि से बचना होता है। चातुर्मास के दौरान मौन साधना का विशेष महत्व है, इसलिए अधिक से अधिक मौन रखना होता है। जैन धर्म में भी चातुर्मास का विशेष महत्व होता है।