देहरादून :- उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का छह साल पुराना एक पत्र आज दिन भर सुर्ख़ियों में रहा है। इस पत्र में तब मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत ने सरकारी सेवा में कार्यरत मुसलमानों को जुमे के दिन अल्पावकाश देने की घोषणा की थी। इस पत्र के बहाने भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस पर हमलावर हो गई है।
चुनाव के दौरान इतिहास में दबे मुद्दे और गड़े मुर्दे भी बाहर निकाले जाते हैं। यह इस बार भी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में हो रहा है। चुनाव से ऐन पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा आदेशित 2016 का एक पत्र जिन्न की तरह बाहर आ गया है। इस शासनादेश में मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रभारी सचिव शैलेश बगौली ने आदेश जारी किया था कि नमाज के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों को जुमे के दिन डेढ़ घंटे के अल्पावकाश की व्यवस्था दी गई है।
इस पत्र के बाहर आने के बाद कांग्रेस में बेचैनी साफ दिखने लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि भाजपा से इससे ज्यादा का उम्मीद ही नहीं कर सकते। इतिहास बन चुका यह पत्र यूं ही खोद कर बाहर नहीं निकला गया है। दो दिन पहले कांग्रेस के सहसपुर से टिकट के दावेदार रहे अकील अहमद ने राज्य में मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाने की मांग कर दी थी।
अकील अहमद मुस्लिम विश्वविद्यालय की मांग करते हुए कहा था, ‘वह भी सहसपुर से टिकट मांग रहे थे। पार्टी ने मुझे टिकट नहीं दिया। निर्दलीय चुनाव में नहीं उतरने के लिए हरीश रावत और पार्टी प्रभारी देवेंद्र यादव ने मेरे साथ समझौता किया था। समझौते में उन्होंने कहा था कि वह सरकार बनने पर राज्य में मुस्लिम छात्रों के लिए मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना करेंगे। इसी समझौते पर मैं निर्दलीय चुनाव में नहीं उतरा। बाद में पार्टी ने अकील अहमद को प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया। अकील अहमद के इस बयान के बाद भाजपा कांग्रेस पर हमलावर हो गई।
भाजपा देवभूमि में मुस्लिम विश्वविद्यालय को किसी हाल में स्वीकार नहीं करेगी। इस बयान के बाद भाजपा ने सीधे हरीश रावत पर हमला बोला। जिसके जवाब में हरीश रावत ने कहा कि मैं तुष्टिकरण की राजनीति नहीं करता हूं। यदि यह कोई साबित कर दे तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। हरीश रावत के इसी बयान के बाद उनका आदेशित पत्र का जिन्न बाहर निकल आया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज हरिद्वार में इस मामले पर कहा कि कांग्रेस हमेशा से ही तुष्टीकरण की राजनीति करती आई है। एक तरफ कांग्रेस चारधाम की बात कर रही है। वहीं दूसरी तरफ देवभूमि में कांग्रेस मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाने की पैरवी कर रही है।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की ओर से 29 दिसंबर 2016 को इस संबंध में शासनादेश जारी किया गया था। इस शासनादेश में हरीश सरकार ने नमाज के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए अल्पावकाश की व्यवस्था की गई थी। हरीश रावत ऐसे किसी आदेश को सार्वजनिक जारी करने के बाद राजनीति से संन्यास लेने की बात कह रहे थे। ऐसे में अब हरीश रावत को अपने इस बयान का अनुपालन करते हुए राजनीति से संन्यास लेना चाहिए।
विवाद बढ़ता देख कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अकील अहमद ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ एक मांग उठाई है। आज राज्य में न ही उनकी सरकार है और न ही पार्टी ने इस पर कुछ कहा है। जबरन मामले को तूल दिया जा रहा है। कुल मिलाकर उत्तराखंड विधानसभा चुनाव मूल मुद्दों से हटकर धार्मिक तुष्टिकरण की ओर जाने लगी है। कांग्रेस को डर सता रहा है कि मुस्लिम वोट कहीं उससे छिटक कर आम आदमी पार्टी या कांग्रेस की ओर न चली जाए। इसलिए वह मुस्लिम विश्वविद्यालय का शगूफा छोड़ा है। जो भी हो धीरे-धीरे चुनाव में मुस्लिम विश्वविद्यालय का मुद्दा कांग्रेस के गले की फांस बनता जा रहा है।