नयीं पीढ़ी जो शायद अधिक पढ़ लिख गयी जिसके लिये चोटी वाला ब्राह्मण सिर्फ हंसी का पात्र बना जो पीढ़ी ये भूल गयी कि उनके पूर्वज अपने भोजन का दूसरा हिस्सा प्रेम और समर्पण से उसी चोटी वाले पंडित के लिये रखा करते थे कहा गया है कि जब ब्राम्हण यजमान के द्वारा पर आता है तो यजमान का अनिष्ट और कष्ट अपने साथ ले जाता है और अपने यजमान के जीवन से अनिष्टों का नाश करता था..
इसीलिये यजमान अपने ब्राह्मण का इंतजार देवता की तरह करते था..पंडित जी के पहुंचने पर घर के बढ़े बूढ़े ब्राह्मण को घेरकर बैठ जाते थे बच्चे एक एक करके ब्राह्मण के पैर छूने आते थे तब भी यजमान ब्राह्मण के साथ हास्य व्यंग्य करते थे लेकिन प्रेम भी बहुत करते थे वह भी अपने यजमान के कल्याण में प्रतिपल चिंतन मनन में रहता था
लेकिन अब अगर पंडित जी रक्षाबंधन के दिन जनेऊ राखी लेकर आये तो श्रद्धा से अब उनका इन्तजार कोई नहीं करता उनको राखी बेचने वाला सेल्स मैन समझकर भीख की तरह उनको दक्षिणा दी जाती है इसलिये उनकी अगली पीढ़ी इस तिरस्कार से बचने के लिये पंडित बनना उचित नहीं समझती..जब प्यार करने वाला यजमान ना रहा तो आर्शिवाद देने वाला ब्राह्मण भी कहां बचेगा।अतः कठिन जीवन जीने पर भी उपेक्षा देख अगली पीढ़ी ने वृत्ति छोड़ दी !