गाजियाबाद में ढीली हो रही है बसपा की पकड़

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गाजियाबाद :- कोविड-19 के चलते लॉकडाउन में जनता को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा जहां विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने सामर्थ्य अनुसार जनता के बीच जाकर ना सिर्फ उनका दुख-दर्द बांटा बल्कि प्रवासी मजदूरों सहित जरूरतमंदों की आर्थिक मदद कर अपना फर्ज निभाया लेकिन पूरे सीन में बसपा के जिलाध्यक्ष और उनकी टीम कहीं नजर नहीं आई। बड़ी बात है कि गाजियाबाद में पांचों विधानसभा के अंतर्गत बसपा का कैटडर वोट भी मौजूद है जो कि आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं कहा जाता। ऐसे में बसपा समर्पित लोगों तक पार्टी के द्वारा किसी प्रकार की मदद ना मिलने के चलते आगामी विधानसभा चुनाव में बसपा को इसका खामियाजा स्थानीय स्तर पर भुगतना पड़ सकता है।

दरअसल गत 23 मार्च से लॉकडाउन के बाद विभिन्न दलों के नेता एवं पदाधिकारी जरूरतमंदों की हर संभव मदद करते हुए नजर आए। जहां कांग्रेस की ओर से विजेंद्र यादव, नरेंद्र भारद्वाज सहित कई नेता अपनी टीम के साथ लोगों को भोजन एवं राशन देते नजर आए। वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से जिलाध्यक्ष राशिद मलिक, सपा महासचिव वीरेंद्र यादव, महानगर अध्यक्ष राहुल चौधरी मोदीनगर क्षेत्र में सपा नेता प्रदीप शर्मा सहित अन्य लोग जरूरतमंदों की यथासंभव मदद करते हुए दिखाई दिए थे। इसके अलावा भाजपा की पूरी टीम राशन, भोजन सैनिटाइजर और मास्क की जैसी चीजें जरूरतमंदों में लगातार वितरित करती रही। जिसका नेतृत्व महानगर अध्यक्ष संजीव ने बखूबी किया लेकिन पूरे लॉकडाउन के दौरान हाथी ब्रिगेड का कोई सिपाही सड़क पर नजर नहीं आया जिसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। बताया जा रहा है कि पार्टी से जुड़े कुछ लोगों ने इस संबंध में बसपा जिला अध्यक्ष से बातचीत भी की थी लेकिन अब इसे जिलाध्यक्ष की निष्क्रियता कहीं जाए या फिर कोरोनावायरस का डर कहा जाए कि उन्होंने सड़क पर उतर कर जनता ही नहीं बल्कि पार्टी के कैडर वोट की मदद करना भी मुनासिब नहीं समझा हालांकि मौजूदा बसपा जिला टीम लॉकडाउन से पहले कई विवाह समारोह में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती नजर आई थी जहां सोशल मीडिया पर फोटो भी जमकर वायरल किए जाते थे लेकिन जब बसपा के कैडर वोट को 2 जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ा तब बसपा जिला कमेटी के पदाधिकारी और जिला अध्यक्ष किसी कोप भवन में चैन की नींद सोते रहे।

गौरतलब है कि गत विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी  सुरेश बंसल ने  पार्टी के कैडर वोट के सहारे काफी अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन मुसीबत के वक्त उसी कैडर वोट को भगवान के भरोसे छोड़ना स्थानीय स्तर पर बसपा के लिए आगामी विधान सभा चुनाव में भारी पड़ सकता है।