– घर में बनाई चॉकलेट बेचकर जुटाती हैं इस काम के लिए पैसा
गाजियाबाद :- हर काम हम सरकार पर नहीं छोड़ सकते हैं, जो बन पड़े हम खुद भी करें। किसी को कुछ देने में मुश्किल हो सकती है लेकिन जागरूक करने में कुछ नहीं लगता। आप चार लोगों को भी किसी मुद्दे पर जागरूक करेंगे तो उसका भी समाज में असर होगा। हो सकता है वह चारों आपकी बात को आगे न बढ़ाएं, लेकिन दो तो बढ़ाएंगे। यह बात गाजियाबाद की पैड वुमैन नमिता गौड़ ने माहवारी स्वच्छता दिवस पर विशेष बातचीत में कही ।
नमिता क्रासिंग रिपब्लिक में रहती हैं वह न केवल माहवारी स्वच्छता पर लड़कियों और महिलाओं से खुलकर बात करती हैं बल्कि पिछले दो वर्षों से खुद सेनेटरी नैपकिन बनाकर जरूरतमंद लड़कियों और महिलाओं तक पहुंचा रही हैं। नमिता ने बताया माहवारी को लेकर महिलाएं खुलकर बात नहीं करतीं। उनकी परेशानी का सबसे बड़ा कारण यही है। उनका कहना है कि माहवारी के दिनों में महिला को अछूत बना दिया जाता है। जब अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन आई तो मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि मैंने जो इश्यू झेले हैं, मेरी बेटी नहीं झेलेगी। मैंने दो साल पहले सक्षम : ए हेल्पिंग हैंड के नाम से संस्था बनाई। घर में चॉकलेट बनाकर जो पैसा कमाती हूं उसे सेनेटरी नैपकिन तैयार करने पर खर्च करती हूं। पिछले दो वर्षों में दस हजार नैपकिन वितरित कर चुकी हूं। नमिता बताती हैं क्रॉसिंग रिपब्लिक में काम करने वाली मेड के अलावा वैशाली, वसुंधरा और कौशांबी में झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं, डूंडाहेड़ा और चिपियाना गांव के अलावा राजस्थान के कोटा और जयपुर में रहने वाली अपनी बहन को कूरियर से भेजकर वितरित कराती हैं। मोदीनगर में रहने वाले अपने परिवार को भेजकर वहां भी जरूरतमंदों की मदद करती हैं।
नमिता बताती हैं कि मैं बायोडीग्रेडेबल नैपकिन बनाती हूं। एक नैपकिन पर करीब साढ़े तीन रुपये का खर्च आता है। उसमें नामी कंपनियों के नैपकिन जैसी चमक नहीं होती, क्योंकि मैं उसमें प्लास्टिक और ब्लीच का इस्तेमाल नहीं करती हूं। बड़े-बड़े परिवारों की महिलाएं जो आए दिन किटी पार्टी करती हैं और बड़ी-बड़ी जगहों पर जाती हैं,पर माहवारी स्वच्छता को लेकर बात करने की झिझक उनमें भी झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं जैसी होती है। नमिता कहती हैं कि वह खुद 39 वर्ष की हो गईं लेकिन पिछले दो वर्ष से अपने बनाए नैपकिन इस्तेमाल करने के बाद ही उन्हें तसल्ली हुई।
लॉकडाउन में जरूरतमंदों तक नेपकिन कैसे पहुंचाए ? इस सवाल के जवाब में नमिता कहती हैं कि मेरी सोसायटी में काम करने आने वाले मेड, जिन्हें मैं उनके इस्तेमाल के लिए नैपकिन देती थी, उन्हीं को अतिरिक्त नैपकिन देकर उनके आसपास रहने वाली लड़कियों और महिलाओं को वितरित करने का आग्रह करती हूं। नमिता का कहना है कि मध्यम वर्ग और गरीब तबके की महिलाएं नैपकिन पर खर्च को अनावश्यक मानती हैं और पुराने कपड़े का इस्तेमाल करके बीमारियों को आमंत्रण देती हैं।