भावनाओं पर रखे काबू तो नहीं होंगे साइबर ठगी का शिकार

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  • सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट शेयर करने से बचें
  • निजी तस्वीरेें, जानकारी का हो सकता है गलत उपयोग

लखनऊ :- साइबर ठगी के जितने मामले सामने आ रहे हैं उनका अध्ययन करने पर पता चलता है कि वे काफी सोच समझकर लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। बहुत सारे लोग सोशल मीडिया पर अपनी भावनाओं का खुलकर इजहार करते हैं जो उन्हें अंततः साइबर क्राइम के जाल में फंसा देता है। इसलिए कुछ भी शेयर करने से पहले उसके परिणाम के बारे में जरुर सोचना चाहिए।

साइबर विशेषज्ञ दीपक कुमार ने बताया कि सोने और कपड़े चेंज करने वाले रूम में लैपटॉप और मोबाइल को स्विच ऑफ रखना चाहिए। आज कई ऐसे ऐप हैं जो कि इंड टू इंड इंक्रिप्शंस नहीं देते हैं। इससे गोपनीयता का हनन बहुत तेजी से होगा। आज जूम ऐप पूरे विश्व में तीन मिलियन लोगों के पास है, वह भी असुरक्षित है। इसकी डाटा को है बहुत आसानी से हैक किया जाता है, लेकिन ऐप आज के समय में शिक्षा जगत में काफी तेजी से फैल रहा है। कई जगह इस ऐप पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है तो कई देशों में इसके ऊपर मुकदमें दायर किए जा चुके हैं।

दीपक कुमार ने बताया कि तालाबंदी (लॉकडाउन) के समय में कई ऐसे साइबर अपराधी कई तरह के लुभावने ऑफर दे सकते हैं। गोपनीय डाटा चुराने के साथ ही उनकी नजर बैंक खाते पर लगी रहती हैं। इतना ही नहीं वे सिम स्वैपिंग और सिम क्लोन करके भी बैंक से पैसा निकाल सकते हैं। उन्होंने बताया कि कई ऐसे फोन आते हैं जिसमें अपराधियों के द्वारा कहा जाता है कि आपके क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क नहीं है। आप ओटीपी दे दीजिए और कुछ घंटे मोबाइल बंद रखें। इतने में ही वे बैंक से पैसा ट्रांसफर करने में कामयाब हो जाते हैं।

इस तरह के आते हैं फर्जी फोन

तालाबंदी के दौरान फर्जी फोन काल की बाढ़ सी आ गई है। साइबर ठग फोन कर कहते हैं कि कोरोना वायरस से आप पीड़ित होते हैं तो हम इंश्योरेंस करा रहे हैं। वे झांसा देते हैं कि आरबीआई का नियम आया है कि तीन महीने तक ईएमआई नहीं देना है, यदि आप ईएमआइ से बचना चाहते हैं तो दिए गए लिंक पर क्लिक करें। साथ ही कई तरह के मोबाइल एप डाउनलोड करने की भी बातें सामने आती हैं जो अंततः साइबर ठगी के हथकंडे साबित होते हैं।

फिशिंग टेक्नोलॉजी से कैसे बचें

तालाबंदी में साइबर ठग फिशिंग टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर रहे हैं। वे वेबसाइट के डोमेन नेम या ऐप में थोड़ा सा परिवर्तन करके हूबहू साइट और ऐप विकसित कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में लोग बिना सोचे समझे, बिना वास्तविक वेबसाइट्स या ऐप जाने अपना गोपनीय दस्तावेज देने के साथ ही निजी बैंक विवरण भी दे देते हैं। ऐसे वेबसाइट पर जाकर दवा या किसी भी चीज का आर्डर करना घातक हो सकता है।