कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन रोकने के लिए व्यापक टेस्टिंग की जरूरत
नई दिल्ली :- सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की गई है कि कोरोना से प्रभावित हॉटस्पॉट इलाकों के सभी घरों में कोरोना के टेस्ट किये जाएं। याचिका में मांग की गई कि कोरोना की व्यापक टेस्टिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे।
इलाहाबाद के लॉ स्टूडेंट्स शाश्वत आनंद, अंकुर आज़ाद और फ़ैज़ अहमद ने दाखिल याचिका में कहा है कि ऐसा करने से कोरोना की चेन को तोड़ा जा सकता है। याचिका में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के 7 अप्रैल के स्टेटस रिपोर्ट का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर 82 टेस्ट किए जा रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि देश में टेस्टिंग के रेट दुनिया में सबसे कम है जिसकी वजह से कोरोना के कंफर्म केस की रिपोर्टिंग काफी कम हो रही है। यही वजह है कि हम वास्तविक खतरे से अनजान हैं। याचिका में कहा गया है कि भारत में संक्रमण की सही जानकारी मिलने पर ही कोरोना को हराया जा सकता है। इसके लिए पहला कदम है बड़े पैमाने पर टेस्टिंग। इसके कम्युनिटी ट्रांसमिशन को रोकने के लिए व्यापक टेस्टिंग की जरूरत है।
याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग कम्युनिटी ट्रांसमिशन रोकने में कारगर है लेकिन अगर बड़े पैमाने पर टेस्टिंग नहीं की गई तो सभी प्रयास विफल हो जाएंगे। टेस्टिंग का अभाव भारत के करोड़ों लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने जैसा है। यह जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
याचिका में मांग की गई है कि कोरोना से लड़ने के लिए मिले सभी पैसों को नेशनल डिजास्टर रिस्पांड फंड और स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड में ट्रांसफर किया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने कोरोना को आपदा घोषित किया है। इसलिए राज्य और केंद्र सरकार को पीएम नेशनल रिलीफ फंड, पीएम केयर्स फंड और सीएम रिलीफ फंड स्थापित करने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है, क्योंकि नेशनल डिजास्टर रिस्पांड फंड और स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड इसी काम के लिए हैं।