– जानिए गरीबों की मदद के लिए कितना पैसा लगेगा
नई दिल्ली :- कोविड-19 महामारी के संकट से देश काफी प्रभावित है। उस पर पिछले 37 दिनों से जारी लॉकडाउन ने लोगों को आर्थिक तौर पर काफी कमजोर किया है। पूर्ण तालाबंदी से रोजगार औऱ उद्योग-धंधे बंद पड़े हैं। लोग घरों में बंद हैं और फैक्टरियों में ताले लटके हैं, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था के सामने आ रही चुनौतियों के मुद्दों पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी से चर्चा के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने गुरुवार को कहा कि सरकार की पहली प्राथमिकता अपने लोगों को बचाने की होनी चाहिए। बाद में सभी देशवासी मिलकर अर्थव्यवस्था को भी सुधार सकेंगे।
राहुल गांधी के पूछे सवाल कि संकट के आज के समय में भारत को क्या करना चाहिए, के जवाब में रघुराम राजन ने कहा कि प्रमुख रूप से स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में ध्यान केंद्रीत करने की जरूरत है। लोगों की आजीविका सुनिश्चित कर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को स्थायी बनाया जा सकता है। इस बीच राहुल गांधी ने हिंदी में सवाल पूछा कि गरीबों की मदद के लिए कितना पैसा लगेगा, तो राजन ने कहा कि इसके लिए करीब 65 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। लेकिन यह ज्यादा नहीं है क्योंकि हमारी जीडीपी 200 लाख करोड़ है, तो हम अपने लोगों को राहत पहंचाने के क्रम मे 65 हजार करोड़ का भार उठा सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस संक्रमण के प्रकोप को लेकर कांग्रेस पार्टी ने दुनिया के प्रमुख विचारकों के साथ चर्चा की एक मुहिम शुरू की है। इस संवाद श्रृंखला की पहली कड़ी में आज,गुरुवार को पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डॉ रघुराम राजन के साथ बात की।
राहुल गांधी द्वारा वायरस संक्रमण क भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर संबंधी सवाल के जवाब में रघुराम राजन भारत के पास बेहतरीन मौका है और वह दुनिया के सामने इसे सशक्त देश के तौर पर पेश भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी को मौके के तौर पर देखते हुए उद्योग-धंधों और आपूर्ति क्रम को बेहतर किया जा सकता है।
कांग्रेस नेता ने वायरस के बीच गिरती अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जताते हुए पूछा कि इस चुनौती से कैसे निपटा जाए। तब रघुराम राजन ने कहा कि कोरोना को हराने के साथ-साथ हमें आम लोगों के रोजगार के बारे में सोचना होगा, इसके लिए वर्कप्लेस को सुरक्षित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन को हमेशा के लिए लागू करना बहुत आसान है लेकिन अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए किया जाना संभव नहीं है। इसलिए जरूरी है कि लॉकडाउन को पूरी तरह हटाने तक इंतजार करने के बजाय धीरे-धीरे व्यवस्था पटरी पर लाई जाए और अर्थ क्षेत्र में हलचल शुरू हो। राजन ने कहा कि अचानक से लंबे समय की बंदी के बाद उद्योग-धंधों को खोलने से भी कई लाभ नहीं होगा, कोशिश व्यापार आदि को धीमा ही सही लेकिन चलाते रहने की होनी चाहिए।
वहीं वैश्विक मंच पर देश की भूमिका के विषय में आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि नये वर्ल्ड ऑर्डर में भारत अपनी जगह बना सकता है। उन्होंने कहा कि सभी को शक्तिशाली नेता अच्छा लगता है और आज भारत दूसरे देशों की मदद कर अपनी उस शक्तिशाली छवि को बना रहा है। राजन ने कहा कि वर्तमान समय में नौकरी और बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्था दो आवश्यक चीजें हैं।
राहुल गांधी द्वारा असमानता के विषय पर चिंता जाहिर करने पर तथा भारत और अमेरिका में इस अंतर को खत्म करने उपाय पर रघुराम राजन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था में कुछ तो गलत है। लोगों के पास रोजगार नहीं है, जिनके पास नौकरी है उनको आगे की चिंता है, आय का असमान वितरण हो रहा है अवसरों का सही वितरण करना होगा। वहीं देश में असमानता पर उन्होंने कहा कि भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में कई राज्यों ने अच्छा काम किया है। अब जरूरत है कि लोगों के समक्ष रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएं।
भारत में अन्य देशों के कम हो रही टेस्टिंग के विषय पर रघुराम राजन ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए देश में व्यापार को फिर से बेहतर करना होगा जिसके लिए लॉकडाउन को हटाना होगा। इसके लिए जरूरी है कि पहले पर्याप्त टेस्टिंग की जाए ताकि संक्रमित और स्वस्थ लोगों की पहचान हो सके। ऐसे में मास टेस्टिंग की ओर तेजी से बढ़ना होगा, जिसमें कोई भी एक हजार सैंपल लेने होंगे और टेस्ट करना होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका-ब्रिटेन आदि वर्तमान में लाखों टेस्ट प्रतिदिन कर रहे हैं लेकिन हमारी टेस्टिंग अब भी रोजाना सिर्फ 20-30 हजार के बीच ही हैं।