हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर पिछले 25 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार, 20 दिसंबर को लगातार तीसरे दिन सुनवाई की गई। इस सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार के अटॉर्नी जनरल, गुरमिंदर सिंह ने डल्लेवाल के स्वास्थ्य की स्थिति से संबंधित रिपोर्ट पेश की। कोर्ट ने निर्देश दिया कि डल्लेवाल को निष्क्रिय अस्पताल में शिफ्ट किया जाए। सरकारी वकील ने यह भी बताया कि डल्लेवाल के सभी आवश्यक टेस्ट कर लिए गए हैं और उनकी सेहत स्थिर है।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता इस बात को लेकर थी कि डल्लेवाल का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन खराब हो रहा है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब पंजाब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वे डल्लेवाल की स्थिति का ध्यान रखें। अगर उनकी स्थिति गंभीर हो जाती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता पड़ी, तो इस बारे में अधिकारियों को निर्णय लेना होगा। इसके साथ ही इस मामले की अगली सुनवाई 2 जनवरी को निर्धारित की गई है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पंजाब के AG से बातचीत के क्रम में डल्लेवाल के स्वास्थ्य को लेकर कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई। AG ने बताया कि डल्लेवाल के ब्लड सैंपल और ECG की रिपोर्ट सामान्य थी, हालांकि कुछ परिणाम, जैसे क्रिएटिनिन और यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि, चिंता का विषय थे। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को निर्देश दिया कि वे तुरंत डल्लेवाल को अस्थायी अस्पताल में स्थानांतरित करें और उन्हें आवश्यक चिकित्सा सहायता प्रदान करें।
इस बीच, डल्लेवाल ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा 2020-21 के आंदोलन के दौरान किए गए वादों को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया है। उन्होंने किसानों की जीवन रक्षकारी मांगों, जैसे कि फसलों की खरीद पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के कानून को लागू करने की आवश्यकता का उल्लेख किया है। उनका कहना है कि ये केवल मांगें नहीं हैं, बल्कि सरकार द्वारा दिए गए वादों का सम्मान है।
डल्लेवाल की हालत बिगड़ने की वजह से उनके支持 में किसान समुदाय भी सक्रिय हो गया है। हरियाणा की खाप पंचायतें 29 दिसंबर को हिसार में एक महापंचायत का आयोजन करने जा रही हैं, वहीं, आंदोलन के नेता सरवण पंधेर ने 30 दिसंबर को पंजाब बंद का आह्वान किया है। यह स्पष्ट है कि किसानों के इस मुद्दे पर आंदोलन और भी तेज हो सकता है, और किसानों की जमीनी लड़ाई जारी रहने की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि वे किसानों की समस्याओं के प्रति गंभीर हैं और अगर जरूरत पड़ी तो वे सीधे तौर पर किसानों की आवाज सुनने के लिए तैयार हैं। इन घटनाक्रमों के माध्यम से यह निश्चित हो गया है कि किसान आंदोलन की गूंज अब न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच चुकी है। यह प्रविधि आगे किस दिशा में बढ़ेगी, यह अगले सुनवाई के परिणामों पर निर्भर करेगा।