पंजाब में निकाय चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर आरोप-प्रतारोप की गतिविधियां तेज हो गई हैं। इस बार लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों पर आरोप लगा है कि वे पैसे लेकर अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी टिकट बांट रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के जिला प्रधान हरविंदर सिंह संधू पर भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने टिकट देने के बाद अपने समर्थकों से पैसे की मांग की। इस विषय पर एक कैंडिडेट ने सोशल मीडिया पर लाइव आकर अपनी समस्याएं साझा की हैं, जबकि दूसरे ने तो टिकट वापस करने की भी घोषणा कर दी है।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही चैटिंग में पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा बीजेपी के जिला प्रधान की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। वार्ड नंबर 33 से हरजिंदर सिंह राजा ने संकेत दिया है कि उन्हें टिकट वापस लौटाने का फैसला करना पड़ा, क्योंकि उन्हें हरविंदर सिंह संधू की ओर से 10 लाख रुपए की मांग की गई। इस प्रकार की मांग ने पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष उत्पन्न कर दिया है।
विजय सिंह हीरा, जो वार्ड नंबर 34 मकबूलपूरा से संबंधित हैं, ने खुलासा किया है कि वे पिछले 11 सालों से बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे कई बार विधानसभा और सांसद चुनावों में पार्टी के लिए सक्रिय रहे हैं। पिछले दो वर्षों से चुनावी तैयारी कर रहे विजय सिंह ने बताया कि उन्हें पिछले कुछ समय में टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें एक अन्य व्यक्ति को टिकट दिलवाकर दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम पार्टी के उच्च अधिकारियों और स्थानीय कार्यकर्ताओं के सहयोग से उठाया गया।
दूसरी ओर, विजय सिंह हीरा ने यह भी कहा कि वे चंडीगढ़ में अपनी नौकरी छोड़कर चुनावी मुहिम में जुटे हुए थे, लेकिन अब उन्हें महसूस हो रहा है कि पार्टी में उन्हें प्राथमिकता नहीं मिल रही। इसके साथ ही, उन्होंने बताया कि उन्हें यह सब देखने के बाद दुख हो रहा है कि पार्टी में आंतरिक राजनीति के कारण मेहनती कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
इस मामले में बीजेपी के जिला प्रधान हरविंदर सिंह संधू से बात की गई, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। यह स्थिति आगामी निकाय चुनावों में भाजपाई कार्यकर्ताओं के मनोबल पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। पार्टी में व्याप्त इस विवाद से यह स्पष्ट है कि टिकट वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता के अभाव के कारण कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है। इस पूरे घटनाक्रम ने राजनीतिक अभ्यास की गंभीरता को उजागर किया है और चुनावी नैतिकता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।