खालिस्तानी समर्थक सांसद अमृतपाल सिंह के सहयोगी बसंत सिंह की मां का निधन हाल ही में हो गया, जिससे पूरे गांव में शोक का माहौल है। मां के अंतिम संस्कार का विश्वास रखकर, बसंत सिंह को डिब्रूगढ़ जेल से विशेष पैरोल पर उनके पैतृक गांव दौलतपुरा लाया गया। इस अवसर पर सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए थे, ताकि इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की किसी प्रकार की व्यवधान की स्थिति का सामना न करना पड़े।
बसंत सिंह के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में उपस्थित लोगों को सुरक्षा के सख्त नियमों का पालन करना पड़ा। गांव में बसंत सिंह के साथ किसी भी व्यक्ति की मुलाकात की इजाजत नहीं दी गई, और सुरक्षा एजेंसियों ने यह सुनिश्चित किया कि वह शांतिपूर्वक अपने दुख को सहन कर सकें। अंतिम संस्कार समारोह के दौरान पुलिस की भारी संख्या में तैनाती से यह जाहिर होता है कि अधिकारियों ने इस कार्यक्रम को लेकर गंभीरतापूर्वक सुरक्षा उपाय किए थे।
गौरतलब है कि बसंत सिंह की मां के निधन का समाचार लगभग तीन दिन पहले आया था। इसी कारण से, प्रशासन ने उनकी सुरक्षित आवाजाही के लिए समय निकाला था। गांव में कड़ी सुरक्षा के बीच अंतिम संस्कार किया गया, जहां बसंत सिंह ने अपनी मां को अंतिम विदाई दी। अमृतपाल के पिता भी इस कठिन समय में अपने बेटे और परिवार का साथ देने के लिए उपस्थित रहे। उन्होंने बताया कि वह कुछ दिन पहले डिब्रूगढ़ जेल में अमृतपाल से मिले थे और उनके बेटे का मनोबल बढ़ाने का प्रयास किया।
इसके साथ ही, सांसद सरबजीत सिंह खालसा की पत्नी भी अंतिम संस्कार में शामिल हुईं। उन्होंने इस मौके पर कहा कि सरकार ने कई बेकसूर लोगों को बिना किसी उचित कारण के जेल में डाल रखा है। उन्होंने इस मामले को उठाने और न्याय के लिए आवाज उठाने का संकल्प लिया। उनका कहना था कि यह अन्यायपूर्ण है कि निर्दोष लोगों को लंबी अवधि तक जेल में रहना पड़ता है और इसके खिलाफ वे लड़ाई जारी रखेंगे।
इस दुखद घटना ने न केवल बसंत सिंह के परिवार में बल्कि उनके साथियों और समर्थकों में भी गहरा असर डाला है। यह स्थिति यह दर्शाती है कि कैसे व्यक्तिगत दुख और राजनीतिक माहौल के बीच जटिलताएँ बढ़ सकती हैं। अंतिम संस्कार के दौरान एकत्रित हुए लोगों में बसंत सिंह के प्रति करुणा और सहानुभूति का भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था, जो कि इस कठिन समय में उनके लिए सहारा बना।